एक ओर खुद में कई रहस्यों को समेटे भगवान जगन्नाथ का मंदिर तो वहीं सागर के लहरों की आवाज, उगते-डूबते सूर्य का दिलकश नजारा और नर्म रेत का सुखद अहसास…. पूरी में आपको सबकुछ मिलेगा. यहां आध्यात्मिक सुख भी है तो समुन्द्र की लहरों से टकराने का रोमांच भी. सागर किनारे बैठ कर उसके विशाल रूप को निहारते हुए मन एक अलग ही संसार में खो जाता है. ओड़िसा के जगन्नाथ पूरी की यही तो खासियत है एक बार जो यहां आया वो बस यही का होकर रह जाता है.
पिछले साल हमारी पूरी जाने की योजना करीब महीना भर पहले से ही तय थी. दरअसल एक फैमिली फंक्शन अटेंड करने हमलोगों को टाटा जाना था. वहां से पूरी नजदीक और जाने के लिए सुलभ रेल साधन होने के कारण जीजू ने सबके सामने पूरी भ्रमण का प्रस्ताव रखा, जिसे सबलोगों ने इतना पसंद किया कि हमारे इस कारवां में कई और रिलेटिव्स भी शामिल हो गए. मैं भी भगवान श्री जगन्नाथ जी की धरती जगन्नाथ पूरी जाने-देखने के लिए काफी रोमांचित था. हिन्दू धर्मग्रंथों में जिस चार धाम की चर्चा हुई है, उसमें बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम् के अलावे एक धाम जगन्नाथ पूरी भी है. इससे पहले एक धाम द्वारिका तो घूम चुका था, अब दूसरे धाम के दर्शन का मौका मिल गया.
पटना से टाटा जाने के लिए हमारा रिजर्वेशन साउथ बिहार एक्सप्रेस में था. ट्रेन राजेंद्रनगर से रात 8:25 में खुली और अगले दिन सुबह 8 बजे हमलोग टाटा में थे. यहां पहले दो दिन रूककर हमलोगों ने फंक्शन अटेंड किया उसके बाद निकल पड़े ओड़िसा के सफ़र पर.

टाटा से पूरी के लिए हमलोगों का रिजर्वेशन कलिंग उत्कल एक्सप्रेस में था. जिस दिन हमलोगों को निकलना था उससे एक दिन पहले ही यह ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई थी, इसलिए मन में एक अनजाना सा भय था, लेकिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन की तीव्र अभिलाषा थी और विश्वास था कि हमारी यात्रा को वो शुभ बनायेंगे, जिसके बाद हमलोग उनका नाम लेते हुए ट्रेन पर चढ़ गए.
अगले दिन सुबह करीब 7 बजे हमलोग पूरी की पावन धरती पर उतर चुके थे. ओड़िसा के बारे में हमेशा किताबों और टीवी में पढ़ता देखता आया था, विश्वास नहीं हो रहा था जो कभी कलिंग कहलाया तो कभी उत्कल नाम से जाना गया, भागीरथी वंश के राजा ओड ने जिस राज्य की स्थापना की, उस ओड़िसा के धार्मिक शहर पूरी में हूं.

पूरी का सबसे पहले उल्लेख महाभारत के वनपर्व में मिलता है. इसके बाद कूर्म पुराण, नारद पुराण, पध्यम पुराण में भी इस जगह की चर्चा हुई है. लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान विष्णु जब अपने चारों धाम की यात्रा पर निकलते हैं तो हिमालय पर बने बद्रीनाथ धाम में स्नान करते हैं, पश्चिम स्थित गुजरात में वस्त्र धारण करते हैं, ओड़िसा के पूरी में भोजन करते हैं और फिर दक्षिण में रामेश्वरम में जाकर सो जाते हैं.
पूरी स्टेशन पर उतरते ही सबसे पहले पर्यटन सुचना केंद्र पहुंचे. हमें लगा की सरकारी तंत्र का हिस्सा होने के कारण यहां होटल से लेकर घुमने सम्बंधित सभी जानकारी सहजता से मिल जाएगी पर यह बंद मिला. अभी स्टेशन से बाहर निकले भी नहीं थे कि कई टूर एंड ट्रेवल एजेंट हमारे आगे पीछे लग गए. सभी अपने अपने पैकेज के बारे में बता रहे थे. अंत में एक ट्रेवल एजेंट को फाइनल कर पूरी और आसपास के दर्शनीय स्थल घुमाने की जिम्मेदारी दे दी. इसके बाद अपने होटल पहुंचे, जहां फ्रेश होकर हमलोग भगवान श्री जगन्नाथ जी के मंदिर की ओर निकल पड़े.
इस मंदिर के निर्माण के संदर्भ में कहा जाता है कि इसे मालवा नरेश इन्द्रद्युम्न ने बनवाया था. भगवान जगन्नाथ ने सपने में आकर उन्हें दर्शन दिया और कहा कि पूरी में दारु पेड़ से मूर्ति का निर्माण करें. लकड़ी से भगवान की प्रतिमा बनाने के लिए खुद भगवन विष्णु और विश्वकर्मा मूर्तिकार की वेश में आये थे. दोनों ने राजा के सामने ये शर्त रखी कि जब तक मूर्ति बन नहीं जाता तब तक उन्हें कमरे से बाहर रहना होगा. शर्त के अनुसार राजा कमरे के बाहर ही रहे. इस दौरान करीब एक महिना बीत गया पर मूर्ति बनने की कोई खबर अन्दर से उन्हें नहीं मिली, जिसके बाद राजा अपना वायदा तोड़ कर कमरे के अन्दर चले गए. लेकिन उस वक़्त तक मूर्ति के हाथ का निर्माण नहीं हुआ था. मूर्तिकार ने उन्हें बिना हाथ वाली मूर्ति देते हुए उसकी पूजा करने को कहा. जिसके बाद उसी अवस्था में राजा ने भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों की स्थापना मंदिर में की.

करीब 192 फुट ऊंचे शिखर वाले इस मंदिर का निर्माण बारहवीं सदी में हुआ था. इस भव्य मंदिर के शिखर पर भगवन विष्णु के सुदर्शन चक्र के प्रतीक के रूप में अष्टघातु से निर्मित एक चक्र लगा है. हर दिन चक्र के पास बने खंभे में अलग अलग तरह का ध्वज लगाया जाता है. यह मंदिर चारों ओर से 20 मी ऊंची दीवार से घिरा है, जिसके अन्दर मुख्य मंदिर के अलावे कई छोटे बड़े मंदिर भी बने है. हालांकि हर मंदिर की तरह यहां भी भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ पंडों की कैद में हैं, बिना पंडा की अनुमति के क्या मजाल कि आपको भगवन के दर्शन मिल जाए, इसलिए होटल वाले ने हमलोगों के साथ भी एक पंडा को नियुक्त कर दिया जो हमलोगों के साथ होटल से मंदिर तक गया.
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मंदिर के बाहर ही जूता चप्पल, बैग, मोबाइल, कैमरा सब जमा करना पड़ता है. हमलोग जब निकले थे तब तक दोपहर होने को थी, और धूप भी जबरदस्त थी, जिस कारण जमीन पर पैर रख कर चलना मानो ऐसा लग रहा था की आग पर चल रहे हों ऊपर से गर्मी अलग, प्यास से सबका बुरा हाल था. मंदिर के अन्दर पहुंच कर सबसे पहले रसीद कटवाया जाता है, इसके लिए काउंटर पर बही खाता लेकर मोटे मोटे पंडे बैठे थे, जिन्होंने पैसा जमा करवाया उसका नाम पता लिखा रहा था. यहां की प्रक्रिया पूरी कर अब भगवान के दर्शन करने मंदिर में गए. जहां जगत के नाथ को उनके भक्तों से दूर बैठाया गया था. श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच करीब एक-दो बांस की दूरी से हमलोगों ने उनके दर्शन किये. उसके बाद बाहर निकल कर अलग अलग कई और मंदिरों में भी भगवान के दर्शन किये.

इस मंदिर के दक्षिण पूर्व में स्थित रसोई भी काफी प्रसिद्ध है. परिसर में स्थित सभी भगवानों के दर्शन करवा कर हमारे साथ जो पंडे थे वो हमलोगों को उस रसोई की ओर ले गए. रसोई के बाहर दीवारों में बने कई छोटे छोटे सुराख़ से अन्दर का दृश्य देखा. लेकिन ताज्जुब इस बात का कि यहां भी पैसों की लूट मची थी और आस्था का मजाक बनाया जा रहा था. बाहर से सिर्फ उस रसोई को देखने के लिए भी भक्तों से पैसे लुटे जा रहे थे. इस रसोई में लकड़ी के इस्तेमाल से मिटटी के बर्तन में भगवान के लिए 56 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं. जिसे महाप्रसाद कहते है. वहीँ मंदिर में गंगा-यमुना नाम के दो कुएं हैं, इसके पानी से ही महाप्रसाद तैयार किया जाता है. अंदर मिटटी की हांडी एक पर एक चढ़ी थी और सैकड़ों लोग पसीने से लथपथ अपने अपने काम में व्यस्त थे. मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट की माने तो इस रसोई में प्रतिदिन एक लाख लोगों के लिए भोजन बनाया जा सकता है. हमें बताया गया कि यहां जो भोग तैयार हो रहा वो पूरी तरह शाकाहारी होता है, जिसमें प्याज-लहसुन का भी प्रयोग नहीं होता.
पर आश्चर्य यह देख कर हुआ कि दोपहर में जब भगवान को भोग लग गया उसके बाद रसोई में पके भोजन की मंदिर परिसर में ही बोली लगनी शुरू हो गयी थी. लोग मिट्टी के छोटे बड़े हांडियों में चावल, दाल, सब्जी रख कर जोर जोर से चिल्ला कर उसे बेच रहे थे. जिसे खरीदने के लिए लोगों की भीड़ लगी थी. मंदिर दर्शन के लिए आने वालों को पूरी के इस जगन्नाथ मंदिर में कथित आस्था के नाम पर किस कदर दिनदहाड़े लूटा जा रहा था मैं यह सब देख कर हैरान था. पहले भगवान के दर्शन के नाम पर, फिर रसोई देखने के बहाने, उसके बाद प्रसाद लेने के लिए, हर मंदिर में पंडों द्वारा दक्षिणा के नाम पर जबरदस्ती वसूली जा रही रंगदारी, सब चीजों के लिए पॉकेट ढीली करनी पड़ रही थी. फोकट में आप चाहे जितनी श्रद्धा और भक्ति दिखाए, कोई फायदा नहीं, क्योंकि जगत के नाथ कहे जाने वाले भगवान जगन्नाथ सिर्फ पैसे वालों को ही अपना आशीर्वाद देते हैं, इस मंदिर में आकर पता चला.
तो मंदिर में केले के पत्तों पर महाप्रसाद का भोग ग्रहण कर हमलोग मंदिर से बाहर निकले. धूप अब भी खूब तेज थी, तय हुआ कि इस भयंकर गर्मी में घूमने से अच्छा है कि होटल में चलकर कुछ देर आराम किया जाए, उसके बाद शाम में पूरी के समुन्द्र में नहाने का मजा लेंगे.
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पूरी में हमलोग होटल जगदीश में ठहरे थे जो काफी अच्छे लोकेशन पर था. यहां से श्री जगन्नाथ मंदिर और पूरी बीच दोनों ही वाकिंग डिस्टेंस पर था. मंदिर से लौटने के बाद हमलोगों ने कुछ देर होटल के अपने अपने वातानुकूलित कमरे में बिताया, फिर तैयार होकर पैदल ही निकल पड़े समुंद्री लहरों में गोते लगाने.

बंगाल की खाड़ी का तट पूरी रेलवे स्टेशन से सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर है. यहां लहरों के साथ मस्ती करने के लिए पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ जुटती है. इस तट को देश के सर्वश्रेष्ठ समुंद्री तटों में से एक माना जाता है. समंदर के किनारे सूर्य को उगते-डूबते देखना, बिखरी सुनहरी रेत, ठंडी हवाओं का बहना, साफ़ पानी की लहरें और उसपर बर्फ सा झाग… ये लुभावने दृश्य आंखों में एक अलग सुकून लाते हैं.
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हमलोगों ने पूरी तट पहुंच कर पहले बालू के ढेर पर अपना सामान रखा, सामने उफान मारती लहरों को देख कर हमारा मन भी मचलने लगा और फिर खुद को नमकीन करने उतर पड़े सागर में. हां यहां के खुबसूरत दृश्यों को कैद करने के लिए सेल्फी स्टिक के साथ मेरा मोबाइल इस दौरान भी मेरे साथ रहा. तेज लहरों के थपेड़ों से जूझते हुए हमने फुल ऑन मस्ती की. कभी एक दूसरे पर गीली रेत फेकें तो कभी पानी में अनबैलेंस होकर एक दूसरे के ऊपर गिरते. पूरी के इस समुंद्री तट पर नहाते हुए हमें अपनी दमन यात्रा याद आ गयी, जहां हमलोगों ने अरब सागर में भी ठीक ऐसे ही लहरों के साथ अठखेलियां की थी. समुंद्र में जब सभी नहाने का आनंद उठा रहे थे तो इस दौरान ख़ुशी और स्नेहा दोनों बीच के बिखरे बालुओं पर अपनी कलाकारी दिखा रही थी.
समुन्द्र में उतरे हुए कितने घंटे हमने बीता दिया इसका ध्यान ही नहीं रहा. धीरे धीरे जब अँधेरा घिरने लगा तो समय का होश आया. हमलोगों के कपड़े और शरीर पर रेत चिपकी पड़ी थी, ऐसे ही निकल पड़े होटल की ओर. जहां पहुंच कर हमलोगों ने साफ़ पानी से नहाया और तैयार होकर फिर निकल पड़े पूरी शहर के बाजारों का जायजा लेने. देर तक पानी में रहने के कारण हम सभी काफी थक गए थे और भूख भी जबर्दस्त लग गयी थी, इसलिए पहले एक चाइनीज रेस्टुरेंट में रूककर चौमिन का मजा लिया.
यहां जगन्नाथ मंदिर के नजदीक सड़क के दोनों तरफ एक कतार में कई दुकानें सजी थी. जहां तरह तरह की चीजें बिक रही थी. पूरी में हाथों से बनाए आइटम दुनिया भर में प्रसिद्ध है. इनमें भगवान जगन्नाथ की मूर्ति, लकड़ी पर नक्काशी, पत्थर से निर्मित वस्तुएं और सीप के इस्तेमाल से एक से बढ़कर एक कलात्मक चीज़ें शामिल है. साथ ही बाजारों में हर डिजाईन के शंख भी मिल रहे थे. बाजार में सामानों की खरीदारी करते वक़्त अन्य चीजों के अलावा हमलोगों ने भी अपने बजट के अनुसार एक-एक शंख ख़रीदा.
शॉपिंग ख़त्म कर जब वापस होटल जाने के लिए मुड़े तो देखा चौराहे पर मंदिर के सामने भगवान जगन्नाथ भगवान का रथ खड़ा था. जाते जाते एक बार फिर हमने बाहर से ही भगवान को प्रणाम किया और फिर कई सेल्फी लेकर पूरी के इन लम्हों को यादगार बनाया.
अगले दिन टूर पैकेज के अनुसार हम चंद्रभागा समुंद्र तट, कोणार्क सूर्य मंदिर, भुनेश्वर स्थित प्रसिद्ध लिंगराज मंदिर सहित कई अन्य जगहों पर जाने वाले थे, इसलिए पूरी में जिंदगी की पहली रात बिताने वापस लौट पड़े अपने होटल की ओर.
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