वो साल 2018 की चढ़ती गर्मी का महीना था. यूं तो हर साल हमलोग फैमिली ट्रिप में कहीं न कहीं घूमने जाते थे, पर इस साल शादी के बाद घरवालों ने हमें कोलकाता और दीघा का टूर पैकेज देकर घुमक्कड़ी के लिए अकेला छोड़ दिया. जब से ये मालूम हुआ कि हम पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता जा रहे हैं मन चहक उठा. आज भले उस शहर को हमलोग कोलकाता कहते हों, पर बचपन की यादें तो तब के कलकत्ता से ही जुड़ी है.
बहुत छोटा था, जब नालंदा जिले के रहुई गांव में रहता था, पापा वहां के हाईस्कूल में साइंस टीचर थे. ऐसे में हमलोग वहां एक डॉक्टर फैमिली के घर में रहते थे. जो कोलकाता के रहने वाले बंगाली थे, इस कारण वो गांव में अपने नाम से कम और बंगाली डॉक्टर के नाम से ज्यादा चर्चित थे. वो अक्सर कोलकाता जाया करते थे तो कभी वहां से उनके रिलेटिव आते थे, ऐसे में वहां की रीति-रिवाज, संस्कृति, खान-पान सब बिहार में रहते हुए भी अपनी आंखों से देखने को मिला. इस तरह छुटपन से वहां की चर्चा सुनते-सुनते मन में इस शहर के प्रति कब से एक खास लगाव हो गया पता भी नहीं चला.
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फिर बड़ा हुआ तो किताबों में उस शहर के बारे में बहुत कुछ पढ़ने को मिला. ये शहर अपने साहित्यिक, क्रांतिकारी और कलात्मक धरोहरों के लिए जाना जाता है. ये ही वो शहर है जहां ईस्ट इंडिया कंपनी आई, सबसे पहले पुनर्जागरण भी इसी शहर में आया और देश की पहली राजधानी बनने का गौरव भी अपने नाम किया. आज पटना में हमलोग भले मेट्रो का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं पर देश में सबसे पहले इसी शहर ने अपने लोगों को मेट्रो रेल की सुविधा दी थी. अब उस शहर में जा रहा हूं ये सोच-सोचकर ही मन रोमांचित हो रहा था. देश के चार बड़े महानगरों में शुमार और हुगली नदी के किनारे बसे इस शहर की सैर का अपना अलग मजा है. इसलिए यहां आने से कई दिन पहले कोलकाता सफ़र की तैयारियों में लग गया.
वैसे तो पटना से कोलकाता आने-जाने के लिए दुरंतो एक्सप्रेस का टिकट गिफ्ट में मिल चुका था, लेकिन उसके आगे दीघा की यात्रा भी होनी थी तो उस सफ़र के लिए ऑनलाइन सारी बुकिंग घर बैठे हमलोगों ने कर ली. पटना से कोलकाता उतर कर सबसे पहले हमारी प्लानिंग दीघा जाने की ही थी. इसलिए रेड बस एप से हमलोगों ने पहले ही कोलकाता से दीघा और दीघा से वापस कोलकाता के लिए एसी बस में अपनी सीट बुक कर ली. डिस्काउंट के कारण ये काफी सस्ती लगी. आने जाने की व्यवस्था तो हो गयी इसके बाद वहां ठहरने का इंतजाम करना था तो याद आया कि ओयो कब काम आएगा. हालांकि अपने इतने सफ़र में हमलोगों ने पहले कभी ओयो से होटल बुक नहीं किया था तो सोचा कि चलो इस बार ओयो की सर्विस ट्राई करते हैं. फटाफट मोबाइल में ओयो एप इंस्टाल किया और रजिस्ट्रेशन के बाद दीघा के एक होटल को भी सेलेक्ट कर उसे ऑनलाइन बुक कर दिया. अब हमलोग निश्चिंत थे, सफ़र की तक़रीबन सभी जरुरी तैयारियां हो चुकी थी. अब बस इंतजार था तो उस दिन का जब हमें पटना से कोलकाता के लिए अपनी ट्रेन पकड़नी थी. हमारा वो इंतजार भी ख़त्म हुआ और फाइनली वो दिन आ गया जब हमें पटना जंक्शन से शालीमार स्टेशन के लिए दुरंतों एक्सप्रेस ट्रेन पकड़नी थी. रात में पटना जंक्शन से हमारी ट्रेन थी. हमें स्टेशन छोड़ने अनिल जीजू आए हुए थे, जिनके साथ सफ़र को लेकर तब तक हंसी-ठिठोली चलती रही जब तक ट्रेन खुल नहीं गयी. अगली सुबह जब नींद खुली तो ट्रेन शालीमार स्टेशन पहुंचने वाली थी, हमलोगों ने भी जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटा और तैयार हो गए पश्चिम बंगाल की धरती पर पहली बार कदम रखने को. दुरंतो ट्रेन शालीमार स्टेशन तक ही जाती है.
ये स्टेशन ज्यादा बड़ा नहीं है, बल्कि उस वक़्त इस स्टेशन के सौंदर्यीकरण का काम चल ही रहा था, कई जगह निर्माण सामग्री भी रखा हुआ था. कोलकाता से इसकी दूरी करीब दस किलोमीटर है. ऐसे में स्टेशन से बाहर आकर सबसे पहले हमने एक ओला कैब बुक किया. और फिर यहीं से हमारी फोटोग्राफी भी शुरू हो गयी. फिर जैसे ही हमारी कैब आई तो उससे हम अपनी अगली मंजिल Esplanade Bus Stand की ओर रवाना हुए. दरअसल कोलकाता के एस्पलेनैड बस स्टैंड से दीघा के लिए सुबह पौने 9 बजे हमारी बस थी. RedBus Mobile App से हमलोगों ने इस एसी बस की बुकिंग कई दिन पहले से कर रखी थी. वैसे हमारे आने से पहले ही सुबह – सुबह प्रदीप जीजू बस स्टैंड पर पहुंच चुके थे और हमारा इंतजार कर रहे थे. बस स्टैंड आकर फिर हमलोगों ने चाय – नाश्ता किया. बस खुलने में अभी बहुत देर थी, तबतक गपशप का दौर चला. इस दौरान कोलकाता और दीघा से जुड़ी कई बातें भी जानने को मिली. अब तक बस का समय भी हो चुका था और अब यहां से हमें दीघा जाना था. पर उससे पहले हमारी सेल्फी यहां भी जमकर हुई. तब जाकर बस पर सवार हुए.
आपको बता दें कि कोलकाता से दो सौ किलोमीटर की दूरी पर ग्रामीण परिवेश में दीघा एक छोटा समुंद्र तटीय शहर है. इसका असली नाम ‘वीरकुल’ है, इसकी खोज 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने की थी. एक अंग्रेज टूरिस्ट जॉन स्मिथ को यह जगह इतनी अच्छी लगी की 1923 से उसने यहीं रहना शुरू कर दिया. जब देश आजाद हुआ तब उसने ही वेस्ट बंगाल के पहले सीएम विधान चंद्र राय के सामने इस जगह को बीच रिसोर्ट के रूप में डेवलप करने की बात रखी. यहां के खुबसूरत समुंद्री तट, आसमान छूते पेड़, मंदिर इन सब के कारण ही दीघा को ‘ब्यूटी ऑफ़ बंगाल’ भी कहा जाता है.
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बस अपनी गति से आगे बढ़ रही थी, और इस तरह हमारे और दीघा के बीच की दूरी लगातार सिमटती जा रही थी. मन में बेचैनी थी, कब दीघा पहुंचे और वहां की सुंदरता में खो जाएं. खैर तक़रीबन साढ़े चार – पांच घंटों के बाद हमारा ये इंतजार ख़त्म हुआ और करीब दो बजे हम दीघा पहुंचे. नए शहर और अनजान लोगों के बीच मन में एक स्वाभाविक सा डर तो था ही, पर उससे ज्यादा दीघा के सी बीच को देखने – घूमने का उत्साह भी था. अब हमें अपना होटल खोजना था, हालांकि, सुबह से ही ओयो की तरफ से कई ग्रीटिंग्स मैसेज आ चुके थे, हेल्प सेंटर ने व्हाट्स एप पर लोकेशन भी शेयर कर दिया था, बस से जहां हम उतरे थे वहां से हमारा होटल ज्यादा दूर नहीं था, मोबाइल पर लोकेशन दस से पंद्रह मिनट के वाकिंग डिस्टेंस पर ही दिखा रहा था, पर लगेज होने की वजह से सोचा कि रिक्शा वगैरह कुछ करना ज्यादा अच्छा रहेगा. तब तक कई रिक्शा वाले हमें अपने रिक्शे में बिठाने को घेर चुके थे. जब हमने वहां की रिक्शा गाड़ी देखी तो हंसी आ गयी. अपने यहां जिस लकड़ी के बॉक्सनुमा रिक्शे में बैठ बच्चे स्कूल जाते हैं, वो हमें उसमें बैठने को कह रहे थे. दीघा पहुंचते ही ये एक नया अनुभव हमें मिल रहा था. खैर उसी रिक्शे में बैठ चल पड़े होटल की ओर.
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दीघा से ये हमारी पहली मुलाकात हो रही थी. रास्ते, गलियां, शहर की आबो – हवा से मिलते हुए कुछ ही मिनटों में हम होटल पारिजयी पहुंचे. यह होटल ओल्ड दीघा के फ़ॉरेस्ट बंग्लो रोड में है. यहां चेक इन करने के बाद हम अपने रूम में पहुंचे. जो काफी वेल डेकोरेटेड था. वैसे अब तक ट्रेन और बस की सफ़र से हमलोग काफी थक गए थे तो सबसे पहले फ्रेश होने चले गए. इससे पहले होटल वालों को खाने का आर्डर भी दे दिया, क्योंकि हमें पता था कि नहाने के बाद जोर की भूख लगने वाली है. जब तक फ्रेश होकर बाथरूम से बाहर निकले तब तक हमारा खाना भी हमारे कमरे में आ चुका था. बस फिर क्या था टूट पड़े चावल – चिकेन पर. खाना खाते हुए करीब चार बज चुके थे. पर बाहर काफी तेज धूप थी. तो सोचा इतनी गर्मी में अभी कुछ देर ओयो रूम की एसी का ही मजा लिया जाए, थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर शाम ढलते ही शहर घूमने निकलेंगे. तब तक सफ़र की थकान भी उतर जाएगी.
हमलोग पहली बार ओयो की सर्विस ले रहे थे. अपने पहले अनुभव में मुझे तो ये बहुत अच्चा लगा. एक तो कम कीमत में इतने बेहतरीन होटल का मिलना, ऊपर से और भी कई सुविधाएं देख सच में दंग रह गए. कमरा काफी सुंदर सजा था, डबल बेड और बैठने के लिए सोफासेट, इसके साथ टीवी – एसी, कपड़े रखने के लिए बड़ा सा आलमीरा, बाथरूम में भी ओयो की तरफ से शावर जेल, मॉइस्चराइजर क्रीम सब रखा था. वहीं टेबल पर रखे जब मीनू कार्ड पर हमारी नजर पड़ी तो देखा कि अरे वाह ओयो तो सुबह का चाय – नाश्ता भी अपनी तरफ से हमें फ्री दे रहा है. उसी वक़्त ये सोच लिया अगली बार जब हमलोग सफ़र में निकलेंगे तो ओयो से ही होटल बुक करेंगे.
होटल के अपने कमरे में आराम करते हुए वक़्त का पता ही नहीं चला, पांच बज चुके थे. हमलोग भी जल्दी – जल्दी तैयार हो कर होटल से बाहर निकल गए. हमें अब दीघा का समुंद्री बीच जाना था, होटल से वो वाकिंग डिस्टेंस पर ही था तो हम पैदल ही चल पड़े. पांच से दस मिनट में हमें सामने से समुन्द्र की लहरें दिखाई देने लगी. ढलते सूर्य की लालिमा के बीच हिलोले मारती सागर की लहरें मन को मोह रही थी. चारों ओर फैला हुआ समुंद्र और किनारों पर लगे नारियल के पेड़ इन सब के बीच मन को अजीब सी शांति मिल रही थी. शाम होने की वजह से हम बंगाल की खाड़ी में ज्यादा अन्दर तक नहीं गए, बल्कि इसके लंबे तट पर ही चहलकदमी करते हुए मजा ले रहे थे. सोचा सुबह फिर आएंगे तब पानी में बैठ कर खूब मस्ती करेंगे. दरअसल, हमलोग ओल्ड दीघा सी बीच के नजदीक रुके थे. ये तट भीड़भाड़ वाले इलाके में हैं. इस पुराने दीघा तट के किनारे बड़े – बड़े पत्थरों को रखा गया है, साथ ही बैठने के लिए सीमेंट से सीटें भी बनी हैं. तो हमने भी कुछ देर सागर किनारे यहीं बैठ झालमुड़ी खाने का आनंद लिया. पर आपको बता दें कि यहां न्यू दीघा सी बीच काफी फेमस है. जो पुराने दीघा से दो किलोमीटर दूर है. और उससे बड़ा काफी बड़ा है. इसके अलावे भी यहां तालसारी, मंदारमनी जैसे कई और समुंद्री तट हैं.
ओल्ड दीघा के तट पर घूमते हुए अब हमें काफी देर हो गई थी. यहां समुंद्र तट के आस पास कई स्थानीय दुकानें हैं जहां काफी सुंदर – सुंदर हैंडीक्राफ्ट सामान और शंख, सीपियों से बनी चीजें मिल रही थी. हमने भी यहां से खरीदारी करते हुए वापस अपने होटल की ओर चल पड़े.
अगले दिन सुबह-सुबह एक बार फिर हमलोग दीघा घाट पहुंचे, शाम में तो हमने लहरों का पूरा मजा नहीं लिया था पर अब हम पूरी तैयारी के साथ आए थे. और आते ही बंगाल की खाड़ी के इस खारे पानी वाली लहरों से लिपट पड़े. यहां कल शाम ढलते सूर्य का नजारा जितना मनमोहक था, उगते सूर्य को देखना भी उतना ही दिलचस्प लग रहा था. समुंद्र की बलखाती लहरों के बीच घंटों हमारी मस्ती चलती रही फिर जैसे ही पानी से बाहर निकले तो हमारी नजर सामने साइकिल पर बिकते डाभ पर पड़ी. खुद को एक बार फिर से रिफ्रेश करने के लिए हमलोगों ने डाभ का भी लुत्फ़ उठाया. अब तक सूरज भी सर पर चढ़ने लगा था, और हमें अभी दीघा में कई जगहों को भी देखना था. इसलिए वापस होटल लौट गए. होटल पहुंचे तो तैयार होते – होते हमारे कमरे में ओयो की तरफ से मिलने वाला फ्री ब्रेकफ़ास्ट भी आ चुका था. जिसमें गरमागरम चाय, ब्रेड और बॉयल्ड एग थे. जिसे खाकर एक बार फिर हम अपनी घुमक्कड़ी पर निकल पड़े.
दीघा में समुंद्री तटों के अलावे घूमने लायक और भी कई जगहें हैं. जिसमें मरीन एक्वेरियम एंड रीजनल सेंटर, चंदनेश्वर मंदिर, दीघा साइंस सेंटर आप जा सकते हैं. होटल से निकलते वक़्त जब गूगल किया तो सबसे नजदीक दस मिनट की दूरी पर हमें समुंद्री एक्वेरियम और रिसर्च सेंटर मिला. फिर क्या था हमने एक ई – रिक्शा वाले को पकड़ा और निकल पड़े शीशे में बंद समुंद्री जीवों को देखने. जब हम यहां पहुंचे तो बाहर में ही व्हेल मछली का स्केल्टन स्वागत करता मिला.अन्दर जाने पर पता चला यहां तो एंट्री फ्री है, मतलब इतनी अच्छी और रोचक जगह पर आप बिना कोई पैसे खर्च किए आराम से घूम सकते हैं और एक से बढ़कर एक समुंद्री जीवों को जिसे आपने कभी नहीं देखा होगा उन्हें सामने से आप देख सकते हैं. जब हमलोग यहां आएं तो ज्यादा लोग नहीं थे, पर कुछ ही देर में यहां भी लोगों की भीड़ लग गयी. वाकई ये जगह हमें काफी अच्छी लगी, जिस शंख को अब तक हमने पूजा स्थलों पर देखा था, उसे यहां पानी के अन्दर चलते हुए देख काफी आश्चर्य हो रहा था. यह Marine Aquarium सुबह दस बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है. एक बात और अगर आप यहां मंगलवार को आएंगे तो ये आपको बंद मिलेगा.
आपको बता दें की ये देश का सबसे बड़ा इन – हाउस एक्वेरियम है, जहां आप छोटी खुबसूरत मछलियों से लेकर एनीमोन, लॉबस्टर, केकड़ों से लेकर भयंकर शार्क तक को पानी से भरे टैंक में देख सकते हैं. यहां घूमने के बाद तो मैं एक बात दावे से कह सकता हूं कि ये जगह बच्चों से लेकर बड़े सभी को काफी पसंद आएगी. हां, इस बात का अफ़सोस है की यहां मोबाइल से फोटो लेना मना है, इसलिए यहां अन्दर की तस्वीरें नहीं ले सका. पर इसके बाहर एक छोटा गार्डन है जहां हमने जमकर सेल्फी ली और फिर वहां से निकल पड़े.
अब हमारे दीघा सफ़र का अगला पड़ाव था चंदनेश्वर मंदिर. आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि चंदनेश्वर पश्चिम बंगाल में नहीं बल्कि ओड़िसा में है. न्यू दीघा से नजदीक होने के कारण घूमने आने वाले लोग यहां भी आते हैं. तो इस तरह अब हम भी ई – रिक्शा से एक राज्य को छोड़ दूसरे राज्य में प्रवेश कर रहे थे. दीघा से करीब 8 किलोमीटर दूर ओड़िसा के बालासोर जिले में पड़ने वाला यह मंदिर यहां सबसे ज्यादा देखा जाने वाला मंदिर हैं. देवों के देव महादेव को समर्पित ये मंदिर काफी प्रसिद्ध है, यहां हर साल चैत्र मेला लगता है. जब हम यहां पहुंचे तब तक दोपहर हो चुकी थी. वैसे भी हमें यहां पूजा नहीं करनी थी, क्योंकि हमलोग यहां श्रद्धालु बनकर नहीं बल्कि घुमक्कड़ बनकर पहुंचे थे. तो बस यहां के अलग अलग मंदिरों में जाकर हाथ जोड़ भगवान के दर्शन कर लिए. वैसे तो यहां हमलोग ज्यादा देर ठहरे नहीं, पर जितने देर मंदिर परिसर में रुका आत्मिक और मानसिक शांति का अनुभव कर रहा था.
यहां से अब हम वापस दीघा की ओर लौट रहे थे, रास्ते भर ई रिक्शा वाले से हमारी बातें चलती रही. वो हमें दीघा शहर की कई बातें बता रहे थे. जब हम ओड़िशा और वेस्ट बंगाल के बॉर्डर के पास पहुंचे तो उन्होंने हमें वहां का काजू गार्डन भी दिखाया. बस फिर क्या था काजू का पेड़ देखते ही हमारे हाथ खुद ब खुद मोबाइल पर चले गए और हरे – हरे काजुओं से लदे पेड़ों के साथ हमने अपनी तस्वीर मोबाइल कैमरों में कैद की.
चलते – चलते अब साइंस सेंटर देखने का भी प्लान था पर पेट में चूहे भी कूदने लगे थे तो तय ये हुआ कि पहले खाना खा लेते हैं और होटल में कुछ देर आराम करने के बाद फिर घूमने निकलेंगे.
हमारे ई – रिक्शा वाले ने बताया कि ओल्ड दीघा में जहां हम ठहरे हैं, वहीं पास में नेहरु मार्केट है. जो काफी पुराना है. दीघा आने वाले यहां शॉपिंग जरुर करते हैं. उसने हमें नेहरु मार्केट के बाहर उतार दिया. जब हम आगे दीघा के बाजार में अंदर गए तो सच में यहां काफी चहल पहल थी. समुंद्री तट पर होने की वजह से यहां आपको मछलियों के अलग – अलग वैरायटी के व्यंजन काफी मिलेंगे. खाने पीने से लेकर हैंडमेड आइटम्स और कई चीजों की दुकानें हैं. कई डिजाइन्स में सीप से बना माला, पर्दा, मूर्तियां, शंख बहुत कुछ मिल रहे थे. हमने भी यहां खाना खाने के बाद जमकर खरीदारी की फिर वापस अपने होटल चले आए. थकान और तेज धूप से हालत ख़राब था. इसलिए एसी की ठंडक मिलते ही कब हम नींद के आगोश में चले गए पता ही नहीं चला. जब नींद टूटी तो शाम हो चुकी थी. अभी न्यू दीघा बीच और साइंस सेंटर भी जाना था तो फटाफट तैयार हुए और बाहर रोड पर आ गए. सामने फिर वहीं ई रिक्शा वाले मिल गए. उन्होंने हमें पहचान लिया और देखते ही कहा चलिए साइंस सेंटर चलते हैं. हम भी फिर उसी रिक्शे पर बैठ उनसे बतियाते निकल पड़े अपनी अगली मंजिल की ओर.
Digha Science Centre & National Science Camp का उद्घाटन 31 अगस्त 1997 को हुआ था. तब से ये पर्यटकों और स्टूडेंट्स के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. होली और दीवाली छोड़ सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है.
यहां घूमने से पहले आपको टिकट लेना पड़ेगा. सामान्य पर्यटकों के लिए यहां टिकट की दर 20 रुपए है. इस टिकट से आप सिर्फ अंदर प्रवेश कर सकते हैं. इसके अलावे साइंस सेंटर में कई तरह के शोज चलते हैं जैसे Taramandal Show, Science Magic & Miracle Show, Unexpected Science Show, Jurassic Park Show, 3D Show और Sky Observation Programme, इन सबको देखने के लिए आपको अलग – अलग Ticket खरीदने पड़ेंगे. इन सबकी कीमत अलग – अलग रखी गयी है. जैसे तारामंडल शो, साइंस मैजिक एंड मिरेकल शो और अनएक्सपेटेड साइंस शो के लिए दस रुपए, वहीं, जुरैसिक पार्क शो देखने के लिए 15 रुपए का टिकट लगेगा, जबकि 3डी शो के लिए 20 और स्काई ऑब्जरवेशन प्रोग्राम के लिए 5 रुपए खर्च करने होंगे. आपको यहां की एक जानकारी ये भी दे दूं कि अगर आप BPL कैटेगरी में आते हैं तो बीपीएल कार्ड दिखा कर सिर्फ 5 रुपए में यहां की इंट्री टिकट ले सकते हैं. वहीं, 3.4 फीट तक लंबे बच्चे, दिव्यांग और ड्रेस में डिफेन्स और पारा मिलिट्री फोर्सेज जवानों के लिए यहां फ्री इंट्री है.
जब हम इसके अंदर पहुंचे तो चारों तरफ सुंदर – सुंदर फूल – पौधे लगे थे, अंदर हॉल में विज्ञान से जुड़ी कई जानकारियां और अलग अलग गैलरी बनी थी, जिसे देखते हुए अपने शहर पटना के श्री कृष्ण विज्ञान केंद्र की याद आ गयी. जिस तरह वहां विज्ञान की एक से बढ़कर एक अद्भुत झलक देखने को मिलती है, ठीक वैसे ही यहां भी साइंस से जुड़े सभी जादू दिख जायेंगे. वहां की तरह यहां भी सारा कुछ वैसा ही था. साइंस को रोचक बनाने के लिए खेल खेल में कई तरह के प्रयोग करने की प्रदर्शनी लगी थी.

वैसे जब हम यहां तारामंडल शो के लिए टिकट लेने पहुंचे तो पता चला इस शो को बंगाली भाषा में प्रेजेंट किया जाता है, अब हम तो ठहरे हिंदी भाषी, और बंगाली में शो होने के कारण हमें कुछ समझ में नहीं आता इसलिए उसे छोड़ दिया. अब तक मोबाइल के कैमरे भी कई बार सेल्फी ले चुके थे और धीरे – धीरे सूरज भी ढलने लगा था तो हमने भी यहां से निकलना ही मुनासिब समझा. यहां से हमें न्यू दीघा बीच जाना था और वहां से सूर्यास्त का वो अद्भुत नजारा देखना था. अपनी बैटरी वाली रिक्शे पर बैठ अब हम अपने दीघा सफ़र के आखिरी मुकाम पर पहुंचने वाले थे.
न्यू दीघा बीच दीघा के सबसे अच्छे समुंद्री तटों में से एक माना जाता है. यह एक साफ़ – सुथरा समुंद्र तट है जिसे हाल ही में टूरिस्ट प्लेस के रूप में डेवलप किया गया है. यहां की प्राकृतिक खूबसूरती, समुन्द्र की ओर से आने वाली ठंडी हवाएं, किनारों पर लगे लहराते पेड़ों के पत्तों की सरसराहट एक अलग अनुभव दे रहे थे. खैर इन सबके बीच हमने सनसेट का वो नजारा मिस नहीं किया था, हालांकि सूर्य बादलों के पीछे बस छिपने जा ही रहे थे. लेकिन शायद उन्हें भी हमारा ही इंतजार था. इस शानदार नज़ारे को देखकर हम काफी खुश थे, आखिर हमारी दीघा यात्रा जो सफल साबित हुई.
दीघा से अब हमें अगले दिन कोलकाता लौटना था, सुबह ओल्ड दीघा बस स्टैंड से ही हमारी बस थी. अगले पोस्ट में अब आपको कराएंगे कोलकाता शहर की सैर, वैसे हमारे साथ आपको दीघा की ये यात्रा कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में लिखकर बताइएगा जरुर.
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