Rishikesh Tour Blog के पहले भाग – ‘ऋषिकेश यात्रा : पटना – दिल्ली रेल सफ़र के दौरान ट्रेन में डर के बीच हुई खूब मस्ती, TTE ने फिर ये क्या किया!’ के बाद ये हमारी यात्रा वृतांत का दूसरा पार्ट है.

दिल्ली से हमारी बस ऋषिकेश के लिए खुल चुकी थी. रात का सफ़र था पर उत्तराखंड की खुबसूरत वादियों में खोने की ऐसी बेताबी कि नींद आंखों से कोसों दूर थी. बस में हम सभी एक दूसरे से गप्पें लड़ा रहे थे. तभी गौरव और प्रसंग सर ने हाथों में गिटार लेकर जो तान छेड़ी, हम सभी उस मधुर संगीत के साथ डूबने – उतरने लगे. गीत – संगीत की इस महफ़िल में किसी के पैर थिरक रहे थे तो कोई मस्ती में झूम रहा था. रात के अंधेरे में बस अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी, तो इधर हमलोग भी ऋषिकेश के इस सफ़र को खूब एंजॉय कर रहे थे.

इसे भी पढ़ें : बनारस भ्रमण… मंदिरों और घाटों के दर्शन

ऋषिकेश, भारत के उत्तराखंड में है जो राजधानी देहरादून से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हरिद्वार के बाद ये दूसरा स्थान है, जहां गंगा नदी पहाड़ों से उतरकर मैदानों में आकर मिलती है और अपनी लगभग 26 सौ किलोमीटर की यात्रा प्रारंभ करती है.

सुबह पांच बजे हम उत्तराखंड पहुंचे. बस की खिड़की से आती ठंडी हवाओं के झोंके एक अलग अहसास करा रहे थे. बाहर का नजारा बिलकुल अभिभूत करने वाला था. घुमावदार रास्ते, पहाड़ों के बीच से गुजरते बादल, चारों तरफ बिखरी हरियाली, नजरें जहां तक जाती, हर तरफ प्रकृति की अथाह खूबसूरती बिखरी पड़ी थी.

हल्की नींद में जब ठंडी हवाएं खिड़कियों से अंदर आकर चेहरे को छू ले, पहाड़ों और दूर जंगलों से आती आवाज कानों में मीठी सी तान छेड़कर जगाए. किसी ऐसी जगह की ही मुझे खोज थी. लंबे अरसे के बाद मन रोजमर्रा के कामकाज और जिम्मेदारियों से अलग कुछ समय के लिए किसी सुकून वाली जगह की तलाश में था. और आख़िरकार उत्तराखंड पहुंच कर मेरी ये  तलाश ख़त्म हुई.

इसे भी पढ़ें : बनारस भ्रमण भाग-2 रामनगर किला, बीएचयू और अस्सी घाट

सच में, यात्रा का एक अलग ही सुख और महत्व होता है. नए – नए जगहों पर जाना, घूमना – फिरना, ये सब हमें काफी कुछ सिखाती हैं. तभी तो कहा गया है “सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहां, जिंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां.”

करीब 6 बजे हमारी बस ऋषिकेश पहुंची. यहां जानकी सेतु (झुला पुल) के नजदीक हमारी गाड़ी आकर रुकी. बस से उतरते ही सामने मां गंगा के दर्शन हो गए.

सुबह उगते सूर्य की रोशनी के बीच कल – कल बहती गंगा की लहरें खूब चमक रही थी. नवनिर्मित जानकी पुल पर टहलते हुए प्रकृति का ये अद्भुत सौंदर्य देख मन आनंद से भर गया.

ऋषिकेश में मुनि की रेती पर बने इस जानकी पुल का उद्घाटन पिछले साल ही नवंबर 2020 को हुआ था. ये पुल ऋषिकेश के टिहरी और पौड़ी जिले को आपस में जोड़ता है.

इसे भी पढ़ें : सारनाथ… भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली

ऋषिकेश पवित्र नगरी है, ये तो हम शुरू से पढ़ते – सुनते आए थे, लेकिन यहां आकर एक और अद्भुत बात हमें पता चली. इस नगरी में जहां एक ओर हम मां गंगा की आराधना करते हैं, वहीं दूसरी ओर भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता के नाम से पुल बनाए गए हैं, जो ऋषिकेश की सुन्दरता में चार चांद लगाते हैं.

Lakshman Jhula ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला के बारे में तो पहले से ही पता था. इसे साल 1929 में बनाया गया था. गंगा नदी पर बना ये पुल ऋषिकेश से करीब 5 किलोमीटर दूर है. हालांकि, सुरक्षा को देखते हुए अभी इसे बंद कर दिया गया है. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण ने इसी जगह पर जूट की रस्सियों के सहारे गंगा नदी को पार किया था. इस कारण इस पुल का नाम लक्ष्मण झूला पड़ा. शुरुआत में इसे जूट की रस्सियों से बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे लोहे की तारों से मजबूत बनाया गया.

लक्ष्मण झूला के अलावे ऋषिकेश में राम झूला पुल भी है. ऋषिकेश से तीन किलोमीटर दूर स्थित इस पुल को 1986 में बनाया गया था. इसके दोनों ओर कई सिद्ध और भव्य आश्रम है. भगवान राम और लक्ष्मण के साथ ही माता जानकी के नाम से भी पुल है. सुबह इसी पुल के पास हमारी गाड़ी रुकी थी. तीन भागों में विभाजित इस पुल का दो लेन विशेष तौर पर पैदल यात्रियों के लिए बना है. तीसरा लेन दोपहिया वाहनों के आने – जाने के लिए है.

इसे भी पढ़ें : विन्ध्याचल यात्रा, बनारस भ्रमण भाग-4

Goa Beach Rishikesh जानकी सेतु पर घूमने के बाद जीप से हमलोग अपने अगले पड़ाव के लिए निकले.

अगर आपको बीच किनारे बैठकर लहरों का मजा लेना है तो गोवा जाने की जरुरत नहीं, बल्कि ऋषिकेश में ही आप गोवा बीच का मजा ले सकते हैं.

गंगा घाट की खूबसूरती वैसे तो मुझे शुरू से ही पसंद रहे हैं. लेकिन जैसे ही मैं ऋषिकेश के गोवा बीच पहुंची, यहां के नज़ारे देख मन खुश हो गया और गंगा की लहरों संग सेल्फी लेने से रोक नहीं पायी.

Rishikesh Goa Beach Lakshman Jhula से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर है. ऋषिकेश में होने के बावजूद इसे गोवा बीच क्यों कहा जाता था, मन में ये सवाल भी उस वक़्त गंगा की लहरों जैसे उमड़-घुमड़ रहे थे. बाद में पता चला कि 10-15 सालों से इस जगह को गोवा बीच कहा जा रहा है. दरअसल, यहां विदेशी यात्री खूब आते हैं. विदेशी सैलानियों की भीड़ रहने के कारण ये गंगा घाट धीरे – धीरे गोवा बीच के नाम से फेमस हो गया. देशी टूरिस्ट भी गोवा बीच का नाम सुनकर यहां आने लगे. जिसके बाद से ही सबकी जुबान पर इस गंगा घाट का नाम गोवा बीच चढ़ गया.

यहां भी हमने खूब एंजॉय किया. गंगा की बहती लहरों में भींगते, तट पर फैले बालुओं पर दौड़ते – गिरते हुए हमलोगों ने कबड्डी खेलने का मजा लिया. तक़रीबन दो – तीन घंटे यहां बिताने के बाद जब थककर चूर हो गए तो फिर यहां से गाड़ी पर बैठ चल पड़े अपने अगले पड़ाव की ओर.

इसे भी पढ़ें : राम मंदिर पर फैसले के बाद पटना से अयोध्या की यात्रा

Camping in Rishikesh अब हमें पहाड़ों पर कैंप करना था. वैसे तो ऋषिकेश योग और तीर्थ नगरी के रूप में विख्यात है, लेकिन अब एडवेंचर टूरिज्म के रूप में भी युवाओं के बीच ये शहर अपनी अलग पहचान बना रहा है. यहां आपको रोमांच का पूरा मजा मिलता है. फिर चाहे वो हिमालय की ट्रेकिंग हो, रिवर राफ्टिंग या बंजी जंपिंग, या कोई और रोमांचक खेल, इस शहर में सबकुछ होता है.

गोवा बीच का मजा लेने के बाद अब हमलोग पहाड़ों पर चढ़ रहे थे. ट्रेकिंग करते हुए ऊपर पहुंचे तब तक सबकी हालत पस्त हो चुकी थी. पहाड़ों की पथरीली सड़कों पर तक़रीबन दो घंटे पैदल चलने के बाद जब उंचाई पर पहुंचे तब हमें हमारा कैंप दिखना शुरू हुआ. यहां पहुंचते ही हमसभी अपने-अपने टेंट रूम में चले गए.

इसे भी पढ़ें : जिंदगी का ये कैसा सफ़र…

Rishikesh Tent Stay आपको बता दें कि ऋषिकेश में ठहरने के लिए कई टेंट हाउस मिल जाएंगे. Luxury Tents in Rishikesh यहां ऐसे टेंट हाउस में अटैच्ड वाशरूम तो होता ही है, इसके अलावा टेंट के अंदर एसी-कूलर से लेकर तमाम तरह की और भी कई लक्ज़री सुविधाएं मिल जाती है.

हमलोग यहां शिवपुरी में ठहरे हुए थे. घंटों पैदल चलने की वजह से ग्रुप के सभी लोग काफी थक गए थे. भूख भी जबरदस्त लगी थी. इसलिए कैंप पहुंचते ही सबसे पहले फ्रेश होने चले गए. नाश्ते में पोहा, पूरी-सब्जी, चाय-ब्रेड और अंडा था. इसे खाने के बाद शरीर को थोड़ी एनर्जी मिली. पेट भर जाने की वजह से अब कुछ देर आराम करने का मन करने लगा. रात को बस का सफ़र और फिर सुबह से घूमना-फिरना, ट्रेकिंग की वजह से काफी थकान हो गई थी. ऐसे में, दोपहर में काफी बढ़िया नींद आई.

आंखें खुली तो शाम हो चुकी थी. टेंट से बाहर निकली तो वहां से ऋषिकेश के पहाड़ों की सुंदरता देखते बन रही थी. जहां हम ठहरे थे वहां से चारों तरफ ऊंचे – ऊंचे पहाड़ों और उनके बीच से गुजरते बादलों को देखना काफी सुखद लग रहा था. सच में, आजकल की दौड़-भाग वाली जिंदगी में ऐसा वक्त बहुत कम मिलता है, जब आप अपनी डेली लाइफ की प्रॉब्लम्स को भुला कर सिर्फ और सिर्फ प्रकृति की गोद में हों, और अभी का ये वक्त मेरे लिए बिलकुल वैसा ही था.

अभी मैं प्रकृति की इस खूबसूरती को निहार ही रही थी कि अचानक ग्रुप के और लोग भी पहुंच गए. फिर क्या था शुरू हो गई हमसभी की सेल्फी. यहां के दिलकश नज़ारे को हर कोई अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहता था.

इसे भी पढ़ें : जमशेदपुर शहर की सैर

धीरे – धीरे अब अंधेरा घिरने लगा था. दोस्तों संग हंसी-मजाक और गपशप चल ही रही थी, तभी डीजे वालों ने अपना गाना बजा दिया. फिर क्या था, म्यूजिक ऑन होते ही एक बार फिर से सभी झूमने लगे.

एक तो पहाड़ों की बेहतरीन शाम, आसमान में उमड़ते-घुमड़ते बादल, पेड़ों से छन कर आ रही ठंडी-ठंडी हवाएं, और दोस्तों के साथ जमा ये माहौल… ऐसा लग रहा था जैसे किसी और ही दुनिया में खो गए हैं.

रात के 11 बजे तक नाचते-गाते हमारी महफ़िल ऐसे ही चलती रही. जब भूख लगी तो फिर खाना खाकर हम अपने-अपने टेंट के अंदर चले गए.

अगले दिन जैसे ही नींद खुली तो देखा बाहर जोरदार बारिश हो रही है. ऊंचे – ऊंचे पहाड़ों से बारिश का पानी पत्थरों से टकराते झरने के रूप में नीचे गिर रहा था.

इन अद्भुत नजारों को देख सोचने लगी. सच में, पहाड़ों पर बरसने वाली बारिश की ये बूंदें प्रकृति को कितनी अधिक खूबसूरत बना देती है ना. बारिश की ऐसी रिमझिम फुहारों को देखने का मजा शहरों की ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच भला कहां मिलेगा.

इसे भी पढ़ें : रजरप्पा मन्दिर के दर्शन

Rishikesh Tourist Places सुबह के इस भीगे-भीगे मौसम की वजह से खुद को काफी रिफ्रेश फील कर रही थी. लेकिन अफ़सोस इस बात का भी था कि पहाड़ों पर बादलों के बरसने की वजह से हमारा बाहर घूमने जाने वाला प्रोग्राम कैंसिल हो गया था.

खैर, अब हमलोग कर भी क्या सकते थे. इसलिए नाश्ता करने के बाद एक-दूसरे के टेंट में जाकर गप्पे लड़ाने लगे. इस दिन हमारी प्लानिंग बंजी जंपिंग और रिवर राफ्टिंग करने की थी. हालांकि, बाद में हमें मालूम चला कि कोरोना की वजह से ये अभी बंद है. ऐसे में दोपहर बाद का ये पूरा दिन हमलोगों ने स्विमिंग और क्रिकेट खेल कर बिताया.

इसी दिन शाम में हमें ऋषिकेश से दिल्ली वापस लौटना भी था. हमने अपने सामानों की पैकिंग कर ली थी. जिसे गाड़ी से नीचे पहुंचा दिया गया.

इसे भी पढ़ें : पटना से देवघर की यात्रा : भोलेनाथ ने जब ऐसे दिया दर्शन

अब हमें पहाड़ों से नीचे उतरना था. ऋषिकेश छोड़ना था. जिस खुबसूरत वादियों के बीच सुकून के चंद लम्हों को जीने आए थे, उनसे दूर जाने का वक्त आ गया था. पहाड़ों के रास्ते एक बार फिर हम पैदल चल पड़े थे. पेड़ों के पत्तों से सरसराती बारिश की बूंदों से बचते-भींगते और पहाड़ों की फिसलन से जूझते हुए ऋषिकेश से विदा ले रहे थे.

पहाड़ों से नीचे उतरे तो देखा हमारी बस लगी हुई है. गाड़ी खुलने में अभी थोड़ी देर थी. लिहाजा, सभी लक्ष्मण झूला की ओर निकल पड़े. वहां हमारे पूरे घुमक्कड़ ग्रुप ने एक साथ सेल्फी ली और इस सफ़र को अपनी यादों में समेट लिया.

…और इधर मैं, लक्ष्मण झूले पर टहलते हुए इस शहर से कब प्यार कर बैठी, पता भी नहीं चला.

इसे भी पढ़ें : बाबाधाम से बासुकीनाथ की यात्रा : पूर्ण हुई जहां हमारी अधूरी पूजा

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here