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कभी आकाश को छूने की तमन्ना तो कभी शहर की सुन्दरता को उंचाई से देखने की ललक. कभी गोलाकार बनी उन 145 सीढ़ियों पर चढ़ते – चढ़ते हांफती सांसे तो कभी पटना की पहचान को नजदीक से देखने की ख़ुशी. कितना जुड़ाव था शहर का इस पुरानी धरोहर के साथ. लगाव आज भी है. लेकिन बदलते समय और इससे भी उंची बन रही इमारतों पर बसते लोगों के लिए अब वह भावना नही रही.

क्यों पड़ी इसकी जरुरत

वर्ष 1770 में जब देश में अकाल की स्थिति आई थी, उस वक़्त करीब एक करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हुए थे. हालात देखते हुए तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने गोल घर के निर्माण की योजना बनायी थी. फिर ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टेन जान गार्सिटन ने अन्न भण्डारण के लिए इसका निर्माण 20 जनवरी 1784 को शुरू करवाया. जो 20 जुलाई 1786 को पूरा हुआ. इसकी खासियत है कि इसमें एक लाख चालीस हजार टन अनाजों को रखा जा सकता है.

बेजोड़ है स्थापत्य निर्माण कला

गोलाकार भवन का आधार 125 मीटर और उंचाई 29 मीटर है. इसमें कोई स्तंभ नहीं है. इसकी दीवारें आधार में 3.6 मीटर मोटी है. गोलघर के शिखर पर लगभग तीन मीटर तक ईट की जगह पत्थरों का प्रयोग किया गया है. शीर्ष पर 2 फीट 7 इंच व्यास का छेद अनाज डालने के लिए छोड़ा गया था, जिसे बाद में भर दिया गया. इसे 1979 में राज्य का संरक्षित स्मारक घोषित किया गया.

क्या है आज की स्थिति

अब जबकि गोलघर लोगों के लिए शायद उतनी महत्ता नहीं रखता वैसे में इसके आसपास रखी निर्माण सामग्री, टूटी सीढियां, पान की पीक, नजर आती है. यहां लेज़र लाइट शो के लिए पानी का तालाब भी बना है, पर उसकी स्थिति भी ख़राब है.

पुरातत्व विभाग कर रहा मरम्मत

तक़रीबन दो साल पहले आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने इस ऐतिहासिक इमारत की शक्ल बदलने का काम शुरू किया था, जो आज भी जारी है. कुछ साल पहले इसकी रंगाई पुताई भी की गयी थी. बहरहाल आर्कियोलॉजिकल सर्वे इमारत को अंदर से मजबूती दे रहा है. कोशिश है इमारत भूकंप के झटके भी सह सके. अंदर का कार्य पूरा होने के बाद इसे बाहर से सुन्दरता प्रदान की जायेगी.

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