रंगीलों राजस्थान को ‘किलों का शहर’ भी कहें तो गलत नहीं, क्योंकि यहां इतने सारे किले हैं जिसे घूमने और करीब से जानने के लिए काफी समय चाहिए. इसी में एक है अरावली पहाड़ियों के बीच बना नाहरगढ़ किला, जो देखने में जितना अद्भुत है उतना ही विशाल भी.
#नाहरगढ़ दुर्ग की इसी खूबसूरती को अपने दोस्तों के साथ देखने पहुंची जयपुर में रहकर एमबीए की पढ़ाई कर रही अविका शर्मा.
#हिंदी_ट्रेवल_ब्लॉग के लिए उन्होंने अपनी इस यात्रा के किस्सों को खुबसूरत शब्दों में पिरोया है.
एमबीए की सेमेस्टर एग्जाम देने के बाद कॉलेज में हमारी 20 दिनों की छुट्टियां हो गई थी. एग्जाम की टेंशन से हमलोगों को आजादी मिली तो सोचा चलो इन छुट्टियों में अपनी इस गुलाबी नगरी जयपुर की खूबसूरती को नजदीक से निहारते हैं.
वैसे तो हमारी परीक्षाएं 15 जनवरी को ही ख़त्म हो गई थी, लेकिन उस दौरान अपनी नींद और आराम हमने सब भूला रखी थी. क्योंकि यहां की ये हमारी पहली परीक्षा थी तो मन में इसका भी डर कहीं न कहीं जरुर था. ठंड के बावजूद वो रात – रात भर जागकर पढ़ना, प्रेजेंटेशन, असाइनमेंट तैयार कर-करके हमारी हालत ख़राब हो गई थी. खैर, जैसे ही छुट्टियां मिली हमने जमकर अपनी नींद पूरी की. हॉस्टल के अपने कमरे में बंद होकर दिन-रात आराम और मोबाइल पर फिल्में और बिग बॉस देख खुद को रिलैक्स किया.
एक दिन कॉलेज की कैंटीन में हम सारे दोस्त यूं ही गप्पे लड़ा रहे थे, तभी किसी ने कहा कि क्या यार! दिनभर हॉस्टल के कमरे में रहकर अब तो बोर होने लगे हैं. क्यों ना इन छुट्टियों में कहीं बाहर चलते हैं. मैं भी उसकी बातों का समर्थन करते बोली, सच में, ऐसा ना हो हमारी सारी छुट्टियां ऐसे ही ख़त्म हो जाए और हमलोग कहीं घूमने भी नहीं जा पाएं.
फिर क्या था, कैंटीन में बैठे – बैठे हमलोगों ने अगले दिन नाहरगढ़ किला Nahargarh Fort Jaipur घूमने जाने का प्लान बनाया. तय हुआ कि सुबह 11 बजे हमलोग नाहरगढ़ फोर्ट के लिए निकल जाएंगे.
उस वक्त तो सबने हामी भर ली लेकिन छुट्टियों का असर था कि अगले दिन सुबह सबकी नींद करीब दस बजे तक खुली. फिर अपने – अपने हॉस्टल में तैयार होने लगे. इसी बीच, कुछ ऐसा हुआ जिसने कुछ देर के लिए हमारी टेंशन बढ़ा दी. ऐसा लगा कि हमें अपनी नाहरगढ़ किला यात्रा कैंसिल करनी पड़ेगी. दरअसल, मेरी रूममेट और फ्रेंड निशा के घर से कॉल आया कि उसे उसके भैया के पास नोएडा जाना है. उनकी तबीयत बहुत ख़राब है. लेकिन फिर बाद में खबर मिली कि उसकी बस अगले दिन सुबह 11 बजे की बुक हुई है. इसी टेंशन के बीच दोपहर के एक बज गए. हमलोग भी फटाफट तैयार हुए फिर दो बजे तक अपने अपने हॉस्टल से बाहर निकले. कॉलेज की एंट्री गेट पर अपने अपने मोबाइल से Ola – Uber Cab बुक करने लगे. एक तो हमलोग पहले ही लेट थे, उसपर ये कैब वाले भी राइड बुकिंग बार-बार कैंसिल कर रहे थे. उनका कहना था कि हम किले के ऊपर नहीं जाएंगे. नीचे ही छोड़ देंगे. ऐसे में हमारी मुश्किल बढ़नी थी, क्योंकि वहां से पैदल एक-दो किलोमीटर ऊपर चढ़ाई करनी पड़ती. वहीँ दूसरा ऑप्शन था कि नीचे से हमें फिर कोई दूसरा ऑटो बुक करना पड़ता. फोन पर कैब वालों के साथ ये ही सब निगोशिएट करते-करते 2:30 बज गए थे. इसी बीच फाइनली हमें एक कैब ड्राईवर मिले जो ऊपर तक हमें छोड़ने को राजी हुए. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि ऊपर जाने के बाद वो दो घंटे हमारे लिए रुकने और फिर वहां से वापस लाने को भी तैयार हो गए. हालांकि इसके लिए हमें उन्हें 12 सौ रूपए देने पड़ गए.
नाहरगढ़ की खुबसूरत और रोमांचकारी यात्रा पर अब हम आगे की ओर बढ़ रहे थे. अरावली की पहाड़ियों और हरे भरे जंगलों से होते हुए हमारी गाड़ी ऊपर चढ़ रही थी. आपको बता दें कि नाहरगढ़ और जयगढ़ आपस में बाई रोड कनेक्ट हैं. जब आप आमेर घाटी से कुछ किलोमीटर घुमावदार पहाड़ियों से गुजरते हैं तो एक तिराहा आता है. वहीं से एक रास्ता नाहरगढ़ की ओर जाता है और एक रास्ता जयगढ़ की तरफ मुड़ जाता है. जब हमलोग आमेर घाटी से नाहरगढ़ की ओर जा रहे थे तो चढ़ाई के दौरान आमेर, जलमहल और जयपुर के अद्भुत नजारों को खूब एंजॉय किया. जयपुर की इस एडवेंचर यात्रा ने हमलोगों के एग्जाम के स्ट्रेस को दूर कर दिया था.
करीब 3:45 बजे तक हम ऊपर पहुंच गए. ऊपर पहुंचते ही हमें वहां एक बड़ा गेट दिखा. यहां आने वाली हर गाड़ियों से 50 रूपए एंट्री चार्ज लिया जा रहा था. जो सिर्फ दो घंटे तक के लिए ही वैलिड रहता है. अगर आपने दो घंटे से कुछ मिनट भी ज्यादा देर किया तो फिर से आपको 50 रूपए देने पड़ जाएंगे.
हमलोग भी अपनी गाड़ी को पार्किंग एरिया में छोड़ अंदर जाने लगे. सामने खाने-पीने की कई सारी चीजें बिक रही थी. यहां से हमने पानी की बोतल, अमरुद मसाले वाली और झाल-मूढ़ी खरीदी. इन सबके टेस्ट का मजा लेते हुए टिकट काउंटर की तरफ बढ़े. यहां एक टिकट का दाम 50 रूपए था. स्टूडेंट्स के लिए रिबेट था और इस बात की जानकारी हमें पहले से थी इसलिए अपने कॉलेज का आईकार्ड हम सबने अपने पास रखा हुआ था. इसे दिखाया तो 20 रूपए में ही हमलोगों को एंट्री टिकट मिल गए. इस टिकट को अपने साथ ही रखना पड़ता है, क्योंकि इसे नाहरगढ़ किले में अंदर जाते वक्त आपको दिखाना पड़ता है. किले के प्रवेश द्वार पर पुलिस वाले तैनात रहते हैं जो आपकी एंट्री टिकट देखते हैं.
हालांकि इससे पहले टिकट काउंटर से कुछ दूर आगे लेफ्ट साइड पर एक बिल्डिंग दिखी जिसका नाम शीश महल था. किसी ने बताया कि इसे देखने के लिए अलग से 5 सौ रूपए का टिकट लेना होगा. उधर बहुत सारे बंदर भी थे. हमारे दोस्तों में से कोई भी वहां जाने को इंटरेस्टेड नहीं था, इस वजह से मैं भी उधर नहीं गई.
आगे हमें सनसेट व्यू पॉइंट दिखा जो इस फोर्ट की सबसे खास लोकेशन है. इस जगह से ढलते शाम को देखना काफी अच्छा लगता है. नाहरगढ़ फोर्ट के इस सनसेट पॉइंट को देखने बड़ी संख्या में टूरिस्ट यहां आते हैं. हर कोई यहां डूबते हुए सूर्य के साथ अपनी सेल्फी मोबाइल में कैप्चर करने की कोशिश में लगा था. हमलोगों ने भी इस अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया. अपने – अपने मोबाइल कैमरे से सिंगल और कई ग्रुप फोटोज निकाले.
नाहरगढ़ किले में घूमते वक्त एक से बढ़कर एक कई खुबसूरत व्यू देखने को मिल रहा था. यहां से जयपुर शहर की सुंदरता भी दिख रही थी. किले की छत पर कुछ टेलिस्कोप वाले भी बैठे थे जो पैसे लेकर जयपुर की फेमस सात इमारतों को दिखा रहे थे.
मैनेजमेंट स्टूडेंट्स होने के नाते हमलोग आपस में इस किले के महत्त्व और इसके ऐतिहासिक पहलुओं पर भी चर्चा कर रहे थे. यहां आने से पहले ही इस किले की कई बातें गूगल कर हमलोगों ने जान ली थी. जैसे अरावली पहाड़ियों पर बना ये Nahargarh Ford राजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1734 में बनवाया था और 1868 में यह किला बनकर तैयार हुआ. 700 फीट की उंचाई पर बने इस किले में देखने लायक जो सबसे खास चीज है वो माधवेन्द्र भवन हैं. इस भवन में राजा के लिए एक कमरा तो रानियों के लिए नौ सबसे खास कमरे बनवाए गए थे. सभी रानियों के महल को राजा के महल से एक गलियारे से कनेक्ट किया गया है. महल में पानी की एक बावड़ी भी बनी है. अगर आपने ‘रंग दे बसंती’ फिल्म देखी है तो आपको याद होगा वो सीन जिसमें आमिर खान और शरमन जोशी बियर पीते हुए बावड़ी में गिरते हैं. वो यही बावड़ी है जहां इस फिल्म का गाना ‘मस्ती की पाठशाला’ फिल्माया गया था.
इस किले में घूमते – घूमते अचानक एक जगह मेरी फ्रेंड निशा ने अचानक पीछे से धप्पा बोल मुझे डरा दिया. मेरी उस सिचुएशन को देख सभी हंसने लगे. तभी ग्रुप में से एक ने कहा, तुम्हारा दिल इतना कमजोर है तो तुम्हें इस हॉन्टेड जगह पर नहीं आना चाहिए. बस फिर क्या था मैंने भी जवाब दिया इतनी खुबसूरत जगह है. ये तुम्हें किस एंगल से भुतहा लग रहा. तभी निशा ने कहा अरे तुम्हें सच में नहीं पता? मैंने कहा – नहीं. तो छत पर टहलते – टहलते उसने बताया कि जब इस किले का निर्माण हो रहा था, उस वक्त इसे बनाने के दौरान कई तरह की अजीब घटनाएं हो रही थी. हर दूसरे दिन यहां निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को अपना काम बिगड़ा हुआ मिलता था. फिर पता चला कि यह जगह राठौर राजा नाहर सिंह भोमिया की थी. उनकी आत्मा की वजह से ही किले के निर्माण में ऐसी दिक्कत सामने आ रही थी. जिसके बाद किले के अंदर नाहर सिंह की याद में एक मंदिर बनाया गया और उनकी आत्मा को शांत किया गया. कहा जाता है उसके बाद महल के निर्माण में फिर कभी गड़बड़ी नहीं हुई.
निशा की ये बातें सुनकर एक पल तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ, सोचने लगी आखिर ये सुंदर किला इतना डरावना कैसे हो सकता है.
खैर अब तक सूरज भी डूब चुका था और हमें अपने हॉस्टल पहुंचने की जल्दी थी. नाहरगढ़ किला की घुमक्कड़ी करते और इसके दिलकश नजारों को देखते दो घंटे कब निकल गए, कुछ पता भी नहीं चला.
किले से बाहर निकल हमलोग पार्किंग एरिया में पहुंचे और अपनी गाड़ी में बैठ चल पड़े. आगे जैसे ही मुख्य द्वार पर पहुंचे वहां गाड़ी का पास मांगा गया, उसपर अंकित समय के अनुसार निर्धारित समय दो घंटे से कुछ ज्यादा वक्त हो गया था. जिसके कारण हमें फिर से 50 रूपए देने पड़ गए. वहां से निकले तो ड्राईवर से बातों ही बातों में पता चला पास में ही जल महल है, लेकिन वो अब बंद हो चुका था. जिसके बाद हमारी कैब अब कॉलेज के रास्तों पर निकल पड़ी.