‘रूबरू’ कार्यक्रम में आपका बहुत – बहुत स्वागत है. इस श्रृंखला में आपको देश – दुनिया की सैर करने वाले बड़े – बड़े घुमक्कड़ों को नजदीक से जानने का मौका मिलेगा. पेशे से माइनिंग इंजीनियर और पहाड़ों से प्यार करने वाले ब्लॉगर ओम प्रकाश शर्मा के सवालों के सामने आप देखेंगे कैसे यात्राओं के प्रेमी अपना दिल खोल कर रख देते हैं. आपकी जर्नी को आरामदेह और आसान बनाने के लिए यात्राओं से जुड़े अनुभव और उनके ट्रेवल टिप्स काफी काम आएंगे. तो चलिए चलते हैं सवाल – जवाब के इस सफर पर…
ओम प्रकाश शर्मा : दोस्तों, रूबरू श्रृंखला को शुरू करने के पीछे हमारा उदेश्य यही था कि घुमक्कड़ी के एक्सपर्ट लोगों से बात करें. उनके अनुभव और यात्रा से जुड़े टिप्स, पर्यटन के बारे में चर्चा करें ताकि अन्य लोग भी उनसे लाभान्वित हो सके. रूबरू की तीसरी कड़ी में हमारे साथ चर्चा करने के लिए उपस्थित हैं प्रकाश उप्रेती जी और हम उनसे बात करेंगे पहाड़ों की जिन्दगी पर, हिमालय पर, उनके प्रदेश उत्तराखंड पर. प्रकाश जी हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है आपका.
प्रकाश उप्रेती : जी, बहुत-बहुत धन्यवाद.
ओम प्रकाश शर्मा : सबसे पहले मैं आपसे जानना चाहूंगा आपके गांव के बारे में, आपकी शिक्षा और वर्तमान में आप क्या कर रहे हैं, इसके बारे में थोड़ा बताइए.
प्रकाश उप्रेती : मेरे गांव का नाम खोपड़ा है. यह रानीखेत से 40 किलोमीटर आगे बद्रीनाथ रोड पर पड़ता है. जहां तक शिक्षा की बात है तो मैंने पत्रकारिता में पीएचडी की है. वर्तमान में लिखना, पढ़ना-पढ़ाना और खाना बनाना चल रहा है.
ओम प्रकाश शर्मा : आप वर्तमान में दिल्ली शहर में रह रहे हैं, पहाड़ों की याद कितनी आती है आपको?
प्रकाश उप्रेती : पहाड़ों की याद तो हर पल आती है. मैं स्वयं के अस्तित्व को पहाड़ों से अलग देख ही नहीं पाता हूं. आज भी UK नंबर की कोई गाड़ी देख लेता हूं तो मन भर आता है.
ओम प्रकाश शर्मा : आप अच्छे और प्रतिष्ठित लेखक भी हैं. पहाड़ों की जिंदगी को आपने बहुत खूबसूरती से कलमबद्ध किया है. क्या चीज आपको लिखने के लिए प्रेरित करती है?
प्रकाश उप्रेती : मेरे लिए लेखन रिक्तता को भरने का माध्यम है. जो बीत गया उसे जी लेने का जरिया है. खुद को देखने का माध्यम है. लेखन की प्रेरणा मेरे लिए मेरी ईजा (मां) है.
ओम प्रकाश शर्मा : आप ‘हिमानंतर’ नामक पत्रिका के संपादक भी हैं जो कि पहाड़ी जीवन को समर्पित है. संपादन कार्य करने की क्या चुनौतियां होती है?
प्रकाश उप्रेती : चुनौती तो ये है कि जिसका लेख नहीं लग पाता है वही दुश्मन हो जाता है. लेकिन, मुझे लगता है कि दुश्मन होना बुरी बात नहीं है. मैं, उनसे उनकी कमी बताकर फिर लिखवा लेता हूं.
ओम प्रकाश शर्मा : भैया, आप मिजाज से घुमक्कड़ और पेशे से अध्यापक हैं, दोनों में तालमेल कैसे बैठाते हैं?
प्रकाश उप्रेती : मैं अध्यापकीय पेशे में दो वर्ष से हूं. इससे पहले ट्रैवल रिपोर्टिंग करता था. अभी भी कॉलेज से महीने में 8 से 10 दिन की छुट्टी मिल जाती है. बाकी हर 3 महीने पर 12-15 दिन की छुट्टी मिलती है. इधर तो मैंने बहुत से स्टडी टूर भी किए हैं. मैं समय निकाल लेता हूं जहां चाह वहां राह की तर्ज पर.
ओम प्रकाश शर्मा : उत्तराखंड पलायन की समस्या से जूझ रहा है. जबकि पर्यटन के क्षेत्र में बहुत संभावनाएं है. हर गांव पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता रखता है. इस समस्या पर आपके विचार जानना चाहूंगा.
प्रकाश उप्रेती : पलायन तो हर जगह और हर समय होता आया है. लेकिन पहाड़ों में इधर बड़ी संख्या में होने वाले पलायन के मुख्य कारण स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार का अभाव है. खेती का कम होना भी इसका बड़ा कारण है. पर्यटन को लेकर पहाड़ी इलाकों को विकसित नहीं किया गया. सरकारी स्तर पर बहुत कम प्रयास टूरिज्म को लेकर होते हैं. मुझे एक होम स्टे बनाने के लिए 3 महीने तो फाइल-फाइल खेलना पड़ता है. इसलिए इस ओर लोगों का ध्यान भी कम जाता है.
ओम प्रकाश शर्मा : उत्तर प्रदेश से अलग होने से उत्तराखंड को फायदा हुआ है या नुकसान? अगर फायदा हुआ है तो क्या?
प्रकाश उप्रेती : पर्वतीय क्षेत्रों को नीतिगत स्तर पर फायदा हुआ. अब किसी भी काम के लिए पर्वतीय मंत्री के पास नहीं जाना पड़ता है. जो सरकारी स्कीम आती है वह गांव तक पहुंच जाती है. स्कूलों की स्थिति बेहतर हुई है. सरकारी व्यवस्था के स्तर पर कोई फायदा नहीं है. बाबू आज भी वैसे ही हैं जैसे तब थे.
ओम प्रकाश शर्मा : क्या पहाड़ की जीवन शैली मैदान की जीवन शैली से कठिन होती है. आपका क्या नजरिया है?
प्रकाश उप्रेती : पहाड़ और मैदानों की जीवन शैली में अंतर तो है. वहां लोगों में एक ठहराव और मिलनसार प्रवृति होती है. मनुष्य और प्रकृति के बदलावों को वहां आप महसूस कर सकते हैं. शहरों में ये संभव नहीं है.
ओम प्रकाश शर्मा : उत्तराखंड के कुछ विशिष्ट अति प्रचलित खाद्य सामग्री के बारे में बताइए. उसमें आपकी पसंदीदा डिश कौन सी है?
प्रकाश उप्रेती : उत्तराखंड फ़ूड की बात करें तो यहां एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजन घरों में बनाए जाते हैं. जैसे- भट की चुड़कानी : भट काले रंग में सोयाबीन के दाने जैसे होते हैं. इनको भून कर उसमें थोड़ा आटा डालकर और मसालों के साथ दाल जैसी बनाई जाती है.
डुबुक : ये उड़द या गेहेत की दाल को पीसकर उसमें मसाले डालकर बनते हैं.
लापसी : दूध में आटा और गुड़ डालकर उसे अच्छे से पकाने पर बनती है. ये अक्सर त्योहार के दिन बनाई जाती है.
अपनी फेवरेट डिश की बात करूं तो मुझे मंडूवे की रोटी, पीसा लूण और भट चुड़कानी है.
ओम प्रकाश शर्मा : भैया, आप तो इतनी जगह घूमते रहते हैं. मेरा सवाल है मुक्तेश्वर जैसी और कोई ऑफबीट जगह है, जहां आसपास फलों के पेड़ या बगीचे हो, रोड कनेक्टिविटी सही हो और परिवार के साथ चार से पांच दिन होमस्टे में बिता सकें?
प्रकाश उप्रेती : जी, इस तरह की एक जगह द्वारहाट के पास बोग्याली है. यह रानीखेत रोड पर स्थित है. दूसरी जगह आप रामगढ़ भी जा सकते हैं. हल्द्वानी से रामगढ़ के बीच दो घंटों का फासला है.
तीसरा आप इधर चंबा से आगे रानीचोरी भी जा सकते हैं.
चौथा धौला भी जा सकते हैं. बिनसर से एक घंटा लगता है. अल्मोड़ा से दो घंटे लगेंगे.
पांचवी जगह पहाड़ पानी भी बेहतरीन है. यह भी हल्द्वानी से दो-ढाई घंटे की दूरी पर है. छठी जगह जौरासी है. यह भी अच्छी और खुबसूरत जगह है. ये जिम कार्बेट से 135 किलोमीटर है.
(हंसते हुए) बाकी, आप चाहे तो मेरे गांव भी आ सकते हैं. बस सड़क की सुविधा आपको यहां नहीं मिलेगी.
ओम प्रकाश शर्मा : वाह, एक से एक नई जगहों की आपने जानकारी दे दी. उत्तराखंड को आप बहुत बहुत गहराई से समझते हैं प्रकाश जी.
प्रकाश उप्रेती : जी समझने की कोशिश में हूं.
ओम प्रकाश शर्मा : अच्छा अगर उत्तराखंड टूर का प्लान करे, जैसे दिल्ली से हरिद्वार, ऋषिकेश से जाएं और उधर नैनीताल – रामनगर से वापस दिल्ली आएं तो एक रूट में उत्तराखंड पूरा घूम कर आया जा सकता है. मुख्य रूप से क्या-क्या देखते हुए आ सकते हैं?
प्रकाश उप्रेती : देखिए इस रास्ते पर तो मैदान और जंगल ही देखने को मिलेंगे. ऋषिकेश से रामनगर तक जंगल और मैदानी इलाका ही है. रामनगर से नैनीताल भी हल्द्वानी होकर जाना होगा तो बस नैनीताल ही देख पाओगे. अगर थोड़ा समय हो तो दिल्ली से रामनगर, जिम कार्बेट, रानीखेत, चौखुटिया, गैरसैण, कर्ण प्रयाग, अगस्त मुनि, रूद्र प्रयाग, देव प्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार आदि इन जगहों को घूम सकते हैं. इसके लिए आपके पास कम से कम दस दिन होने चाहिए.
ओम प्रकाश शर्मा : चार धाम यात्रा के लिए सबसे उचित समय कब होता है, जिसमें आप सबसे कम दिक्कतों के साथ यह यात्रा कर लें.
प्रकाश उप्रेती : जून – जुलाई के बीच इस समय भीड़ अधिक होती है. लेकिन सितंबर – अक्टूबर के महीने में भीड़ कम रहती है. और प्राय: मौसम भी अच्छा ही रहता है.
ओम प्रकाश शर्मा : क्या उत्तराखंड में किसी ऐसी जगह का नाम बताएं जहां एक-डेढ़ महीने तक शांति के साथ जीवन व्यतीत किया जा सके. लक्जरी खाने और होटल की चाहत भी नहीं. सब कुछ सादगी से भरा हो.
प्रकाश उप्रेती : अगर शांत वातावरण चाहते हैं तो मैं तो यही कहूंगा कि आप जौरासी चले जाएं. अल्मोड़ा जिले में स्थित ये काफी बेहतरीन जगह है. फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट का वहां एक गेस्ट हाउस भी है. ये बहुत ही शांत और बांज के पेड़ों से घिरा हुआ इलाका है. यहां जाने के लिए रामनगर से सीधे बद्रीनाथ वाली रोड लेनी है. रामनगर से 145 किलोमीटर पर है. और चौखुटिया मेन बाजार से 20 किलोमीटर पड़ेगा. हमारे इलाके की ये सबसे ऊंची जगह है.
ओम प्रकाश शर्मा : उत्तराखंड के निवासियों द्वारा सरनेम में गांव का नाम जोड़े जाने की प्रथा (नौटियाल, थपलियाल आदि) और इसके इतिहास के संबंध में यदि संभव हो तो कुछ प्रकाश डालें.
प्रकाश उप्रेती : कुछ डोमिनेटिंग जातियों के नाम पर जरुर गांव के नाम हैं. जैसे डूंगरी – डुंगराव जाति, डोभाल पड़ा डोभाल जाति पर. लेकिन अधिकतर नाम यहां के पहाड़ों, नदियों और स्थानीय मान्यताओं के आधार पर हैं. जातियों के आधार पर नाम रखने की परंपरा वर्चस्ववादी संरचना के कारण हुई थी. जातियों पर जो भी गांव के नाम हैं वो ब्राह्मण और क्षत्रिय जातियों के नाम पर ही हैं.
ओम प्रकाश शर्मा : मेरा अगला सवाल आपसे जिम कार्बेट नेशनल पार्क को लेकर है. क्या कोई ऐसा रूट है जिसके द्वारा जिम कार्बेट राष्ट्रीय अभ्यारण्य को पूरी तरह से बाइक द्वारा घुमा जाए?
प्रकाश उप्रेती : जिम कार्बेट तक तो जा सकते हैं, लेकिन उसके अंदर बाइक से नहीं जा सकते हो. दिल्ली से 5 घंटे में जिम कार्बेट पहुंच सकते हैं.
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ओम प्रकाश शर्मा : पहाड़ों से प्रेम होने के कारण मेरा आगे का सवाल भी इन पहाड़ों से ही जुड़ा है. ये जो पहाड़ों पर पलायन होता है इसको कैसे रोका जा सकता है. क्योंकि वो व्यक्ति वहां से जाना नहीं चाहता लेकिन तब भी जाना पड़ता है. आखिर क्यों?
प्रकाश उप्रेती : देखिए, पलायन दो तरह का होता है. एक पलायन प्रतिभा का होता है. वह सदियों से चला आ रहा है. आजादी से पहले तो उत्तराखंड के लोगों की बड़ी जमात लाहौर में थी. वहां उन्होंने गढ़वाल सभा का गठन किया. गढ़वाल भवन बनाया. पलायन तब भी था. दूसरा पलायन है मुसीबत का. इस पलायन को सरकार शिक्षा, रोजगार और बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के बल पर रोक सकती है.
ओम प्रकाश शर्मा : पहाड़ों में आपने कौन – कौन से ट्रेक किए हैं. अब तक का कोई ऐसा ट्रेक जिसमें आपको कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ा हो?
प्रकाश उप्रेती : मैंने कर्ण प्रयाग से पिंडारी वाला ट्रैक और गंगोत्री से गौमुख सुरकंडा से चंबा ट्रेक किया है. अब तक कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.
ओम प्रकाश शर्मा : अब हमारी चर्चा अंतिम मोड़ पर है. आखिरी सवाल ये है कि पहाड़ों के विषय पर लिखी कौन सी किताब आपको सबसे ज्यादा पसंद है.
प्रकाश उप्रेती : वैसे तो कई किताबें मुझे पसंद है. लेकिन उनसब में त्रेपन सिंह का लिखा उपन्यास यमुना मेरे दिल के ज्यादा करीब है. इस उपन्यास में पहाड़ की स्त्रियों का संघर्ष दर्ज है. ‘पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम नहीं आती’ ये वाक्य पहाड़ी जीवन के दर्द को बखूबी बयां करता है. इस उपन्यास में हमसब प्रवासियों की पीड़ा और हमारी इजाओं का भी दुःख सम्मिलित है. इस कारण ये किताब मुझे बेहद प्रिय है.
ओम प्रकाश शर्मा : प्रकाश भैया, बहुत-बहुत आभार आपका इस बेहद सुंदर चर्चा के लिए. आपसे बात करने का अलग सुख है.
प्रकाश उप्रेती : मुझे भी बहुत अच्छा लगा. आपका भी बहुत शुक्रिया दादा.
bahut he sunder ;
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