‘रूबरू’ कार्यक्रम में आपका बहुत – बहुत स्वागत है. इस श्रृंखला में आपको देश – दुनिया की सैर करने वाले बड़े – बड़े घुमक्कड़ों को नजदीक से जानने का मौका मिलेगा. पेशे से माइनिंग इंजीनियर और पहाड़ों से प्यार करने वाले ब्लॉगर ओम प्रकाश शर्मा के सवालों के सामने आप देखेंगे कैसे यात्राओं के प्रेमी अपना दिल खोल कर रख देते हैं. आपकी जर्नी को आरामदेह और आसान बनाने के लिए यात्राओं से जुड़े अनुभव और उनके ट्रेवल टिप्स काफी काम आएंगे. तो चलिए चलते हैं सवाल – जवाब के इस सफर पर…

ओम प्रकाश शर्मा : रूबरू की दूसरी कड़ी में हमारे मेहमान देश के उभरते हुए फूड ट्रेवलर हैं. अपने अनूठे फ़ूड ब्लॉग स्वादलिस्ट के जरिए वो हमारे विविधता से भरे देश के 5 हजार स्वाद से हमें रूबरू कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं. वो न सिर्फ फ़ूड ब्लॉगर हैं, बल्कि एक बेहतरीन लेखक और घुमक्कड़ भी हैं. तो इस श्रृंखला में चर्चा करने के लिए हम तहेदिल से स्वागत करते हैं पारुल सहगल जी का. आपको बता दें कि पारुल भैया फ़ूड टूर करते हैं, किसी भी शहर के प्रसिद्ध खाने और जिस जगह मिलता है, उसके बारे में लिखते हैं, उसके विशेषज्ञ हैं.

पारुल सहगल : धन्यवाद ओम प्रकाश जी, मेरा ये सौभाग्य है कि आप सबसे रूबरू होने का अवसर मिला. मुझे यह सम्मान देने के लिए आपका आभार व्यक्त करता हूं.

ओम प्रकाश शर्मा : भैया, आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. ये चर्चा आपके फ़ूड ब्लॉगर के पहलू पर करते हैं.

पारुल सहगल : जी, अवश्य. खाने का स्वाद लेना और फ़ूड ब्लॉगिंग करना मेरा पैशन है.

ओम प्रकाश शर्मा : सबसे पहले अपने निजी जीवन का थोड़ा परिचय दे दें. आपका निवास स्थान, शिक्षा और व्यवसाय के बारे में बताएं.

पारुल सहगल : मैं मूल रूप से पंजाब के लुधियाना शहर का रहने वाला हूं. लुधियाना में ही मेरा जन्म हुआ. यही प्राथमिक से लेकर ग्रेजुएशन की शिक्षा पायी. फ़िलहाल पिछले करीब 12 सालों से दिल्ली एनसीआर में रह रहा हूं. जीवनयापन के लिए एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर के रूप में कार्यरत हूं. मेरा फिल्ड लॉजिस्टिक ऑपरेशन्स का है. अपने क्षेत्र में करीब 16 सालों का मुझे अनुभव है.

ओम प्रकाश शर्मा : मेरा पहला सवाल. आप जहां रहते हैं वहां की फेमस डिश कौन सी है?

पारुल सहगल : जी, मैं अपने मूल स्थान यानि कि पंजाब की बात करूं तो सरसों साग के साथ मक्के की रोटी और लस्सी विश्व प्रसिद्ध है.

और अपने अभी के निवास स्थान की बात करूं तो दिल्ली में यूं कई प्रकार के कुजिन प्रचलन में हैं. परन्तु खस्ता कचौड़ी और छोले-भटूरे दिल्ली में कुछ छिपे हुए स्थानों पर मिलते हैं वैसा कहीं ओर नहीं मिलता.

इसे भी पढ़े : आइए चलते हैं वेस्ट बंगाल के दीघा बीच, जहां हुई थी जमकर मस्ती

ओम प्रकाश शर्मा : आप खुद भी कुकिंग करते हैं क्या? घर पर आपका सबसे पसंदीदा खाना क्या होता है?

पारुल सहगल : जी, मुझे जितना बाहर से अलग-अलग स्वाद चखने का शौक है उतना ही घर पर नयी-नयी डिशेज पकाना और एक्सपेरिमेंट करना पसंद है. अभी के इस लॉकडाउन में तो अपनी कुकिंग कला को और भी निखारने का अच्छा मौका मिल गया. व्यक्तिगत तौर पर मुझे अलग-अलग तरह के पराठें काफी अच्छे लगते हैं. मैं घर पर ही लगभग 40 अलग-अलग तरह के पराठें बनाकर ट्राई कर चुका हूं.

पारुल सहगल

ओम प्रकाश शर्मा : आप एक प्रसिद्ध फूड ब्लॉगर हैं. फ़ूड ब्लॉगिंग में आपकी रूचि कैसे जगी?

पारुल सहगल : मैं पिछले लगभग 16 वर्षों से नौकरी में हूं. शुरू से ही मेरी जॉब टूरिंग वाली थी. इसमें देश के अलग-अलग भागों में जाना होता था. स्वाद के साथ शुरू से ही ऐसा नाता रहा है कि जहां भी जाता वहां का स्थानीय स्वाद चखना और उसे अनुभव करना मेरा शौक रहा है. ये अलग-अलग स्वाद यूं समझ लीजिए कि मन की हार्डडिस्क में कहीं न कहीं सालों तक स्टोर होते रहे.

ओम प्रकाश शर्मा : स्वादलिस्ट नाम से आपका जो फ़ूड ब्लॉग है, उसके पीछे की क्या कोई कहानी है. इसे शुरू करने की प्रेरणा कहां से आई? इसके नाम के पीछे की कोई खास वजह?

पारुल सहगल : अपनी जिन्दगी में मैंने देश के दक्षिण, पश्चिम, पूरा पूर्वी भारत घूमा. इस दौरान करीब हर छोटे-बड़े शहरों का स्थानीय स्वाद चखा. फिर एक दिन ऐसा आया कि मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद के साथ-साथ मां सरस्वती की भी कृपा हुई, और अंदर से ये आवाज आई कि अपने अनुभवों को अब लिखना चाहिए. बस यहीं से ब्लॉगिंग की शुरुआत हुई.

SwadList नाम मेरे छोटे भाई ने सुझाया था. उसी ने इस वेबसाइट को बनाने में मेरी  मदद की. स्वादलिस्ट एक नाम के तौर पर अपने आप को जस्टिफाई करता है कि यह स्वादों की एक सूची है जिसे कोई भी फूडी व्यक्ति पढ़ सकता है.

इसे भी पढ़े : कोलकाता : विक्टोरिया मेमोरियल, कालीघाट काली मंदिर घूमना, वो देर रात सड़कों पर भटकना…

ओम प्रकाश शर्मा : चलते हैं अगले सवाल की ओर. किसी भी स्थान को घूमने और उस जगह को पूरी तरह महसूस करने में वहां के लोकल फ़ूड का आपकी नजर में क्या महत्व है?

पारुल सहगल : जी, भोजन और स्वाद अपने आप में एक संस्कृति है और किसी भी स्थान का स्थानीय भोजन उस स्थान की पहचान होता है. जैसे चेन्नई जाकर राजमा-चावल ढूंढना तर्कसंगत नहीं है. जबकि इडली-डोसा चेन्नई की पहचान है. इसके विपरीत आपको जम्मू में इडली-डोसे का वह स्वाद कभी नहीं मिल सकता जो वहां के राजमा-चावल का है. किसी भी स्थान का पर्यटन उस स्थान विशेष के स्थानीय भोजन का स्वाद लिए बिना पूर्ण नहीं माना जा सकता.

ओम प्रकाश शर्मा : अगर आपको भारत देश के तीन सबसे स्वादिष्ट व्यंजनों के बारे में पूछे तो वह कौन से होंगे?

पारुल सहगल : यह बताना थोड़ा सा कठिन है. क्योंकि स्वादिष्ट का अर्थ हर किसी के लिए भिन्न-भिन्न है. किसी को चिकेन पसंद है तो किसी को दाल.

ओम प्रकाश शर्मा : पारुल, इस नाम का छिद्रान्वेषण करें तो पा से पाकशास्त्र, रू से रुचिकर, और से लजीज.

हर जगह का अलग स्वाद होता है. जैसे राजस्थान का तीखा, गुजरात में मीठा तो उत्तर में चटपटा. आपको किस तरह का स्वाद पसंद है? और आप किसी स्थान विशेष के स्वाद को किन मानदंडों पर दूसरे स्थान के स्वाद से श्रेष्ठ समझते हैं?

पारुल सहगल : अरे वाह, मेरे नाम का इतना सुंदर विश्लेषण. धन्यवाद स्वीकार कीजिए. व्यक्तिगत रूप से मुझे तीखा पसंद है. सो, राजस्थानी व्यंजन और दक्षिण भारतीय चेट्टीनाड शैली के व्यंजन मुझे पसंद है.

हरेक व्यंजन के कुछ स्थानीय स्वाद होते हैं, जो उस स्थान विशेष के हवा-पानी और रॉ मैटिरियल पर निर्भर करता है. जैसे कि अमृतसर में बनने वाले कुलचे पूरे भारत में प्रसिद्ध है. वहां जैसा स्वाद और कहीं नहीं आ सकता. कुलचे बनाने वाले अमृतसर के कारीगर को अगर आप कोलकाता में कैटरिंग के लिए बुलाते हैं तो असली कारीगर अपना रॉ मैटिरियल और पानी तक अमृतसर से ही मंगाएगा. इसी प्रकार से रॉ मैटिरियल के साथ-साथ किसी भी डिश को पकाने का स्टाइल भी उसे विशेष बनाता है. जैसे चिकेन उत्तर भारत में टमाटर और मक्खन की ग्रेवी में बटर चिकन बनता है, जबकि वही चिकेन गोवा में नारियल के पानी में गोअन करी में बिलकुल अलग स्वाद में पकता है. इसलिए, रॉ मैटिरियल और बनाने का स्टाइल ये दो ऐसे कारक हैं जिनको मापदंड मानते हुए किसी स्थान विशेष के भोजन को वर्गीकृत किया जा सकता है.

इसे भी पढ़े : पटना में लीजिए अब हॉट एयर बैलून, पैरामोटर फ़्लाइंग जैसे कई एडवेंचर का मजा

ओम प्रकाश शर्मा : पाठकों को ये बताइए कि यात्रा के दौरान आप ये कैसे पता करते हैं कि कोई चीज प्रसिद्ध है तो उसकी ओरिजिनल जगह (दुकान/रेस्तरां) कौन सी है. क्योंकि होता ये है कि किसी जगह एक चीज प्रसिद्ध हो जाए तो आसपास उस नाम से दस नक़ल करने वाले तैयार हो जाते हैं.

पारुल सहगल : जी ये बहुत अच्छा सवाल है. वाकई, फ़ूड टूर करते वक़्त इसका पता लगाना एक बड़ी समस्या होती है. कई बार एक ही व्यंजन को तीन-चार दुकानों पर जाकर चखना होता है. कभी-कभी स्थानीय लोगों खास कर बड़े-बुजुर्गों से ये जानकारी निकलवानी पड़ती है.

हालांकि, अब काफी अनुभव हो गया है. असली-नकली की पहचान कैसे करें ये कला थोड़ी आ गयी है. जैसे कि अंबाला में पूरण सिंह के नाम से 8-10 ढाबे हैं और वहां जाने पर सब आवाज दे-देकर ग्राहकों को बुलाते हैं कि हम ही असली हैं… जबकि असली वाला चुपचाप अपनी दुकान पर बैठा रहता है. वो किसी ग्राहक के सामने खुद को असली बताने नहीं जाता.

यूपी के वाराणसी में भी बिलकुल ऐसा ही हुआ. यहां बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी घूमते हुए पहुंचा. BHU के बाहर लस्सी की कई दुकानें हैं. असली पहलवान लस्सी की पहचान चार दुकानों के बाद हुई. नकली वाले सामने से बोल-बोल कर अपने असली होने का दावा कर रहे थे. जबकि असली वालों को कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी. उसका स्वाद ही बोल रहा था.

ओम प्रकाश शर्मा : जब हम किसी भी नई जगह घूमने जाते हैं तब हम ये कैसे पता करें कि खाने-पीने की सबसे अच्छी जगह कौन सी है स्वाद और पैसे के लिहाज से?

पारुल सहगल : यहां पर एक टैक्ट है जिसे अपनाना सबसे कारगर रहता है. किसी भी नए शहर में जाने पर आपको सबसे अच्छा फ़ूड गाइड एक ऑटो/टैक्सी चालक के रूप में मिलता है. 25 से 35 साल की उम्र के लोकल ड्राईवर से सिर्फ इतना कहना है कि जहां वो नाश्ता या लंच आदि करता है वहीं आपको ले चले. आपका स्वाद ढूंढने का 75 फीसदी काम समझिए यहीं हो गया.

इसके अलवा, विपरीत स्वाद किसी भी प्रसिद्ध दुकान से पता करना सबसे आसान होता है. उदाहरण के लिए उदयपुर में पंडित जी लेमन टी वालों ने मुझे बताया कि फालूदा प्रिंस का सबसे अच्छा होता है. …लेमन टी तो स्वाभाविक है कि वो अपनी ही सबसे बेस्ट बताएगा.

इसी प्रकार, यदि कहीं फ़ास्ट फ़ूड खा रहे हैं तो वह दुकानदार आपको सबसे अच्छी पूरी-भाजी की दूकान का पता दे सकता है.

कोलकाता यात्रा : दक्षिणेश्वर काली मंदिर, बेलूर मठ दर्शन के साथ गंगा में वो नाव की सवारी…

ओम प्रकाश शर्मा : जब हम यात्रा की प्लानिंग करते हैं तो पर्यटन स्थल, होटल्स, आवागमन वगैरह को ही पूरा नहीं देख पाते. आप ढूंढकर गलियों में पहुंचकर चटखारे ले लेते हैं. कौन बताता है ये सब आपको, कैसे करते हैं इसकी तैयारी?

पारुल सहगल : सबसे पहले तो इस प्रश्न में ही उत्तर छिपा हुआ है कि असली और पुराने स्वाद लेने केलिए गलियों में उतरना पड़ेगा वो भी पैदल. इसके अलावा जब मैं प्रॉपर फ़ूड टूर करता हूं तो उस शहर के बारे में कई दिन पहले ही पूरी R&D की जाती है. स्थानीय मित्र, इंटरनेट आदि से जानकारी इकट्ठा करने के बाद बाकायदा बाकायदा एक्सेल शीट बनती है कि किस-किस दुकानों पर कब जाना है. फ़ूड आइटम, दुकान, मिलने का समय आदि सब फ़िल्टर कर प्लान होता है.

ओम प्रकाश शर्मा : वाह, सही है. इतनी मेहनत ही तो स्वादलिस्ट को सबसे अलग और खास बनाती है. चलते हैं अगले सवाल पर.

चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, वैष्णो देवी जाते हुए अंबाला कैंट रास्ते में पड़ता है. पारुल जी बताइएगा कोई खास फ़ूड जंक्शन या फ़ूड पॉइंट और वहां की फेमस डिश या मिठाई जो अंबाला से निकलते वक़्त आसानी से एक्सप्लोरकिया जा सके?

पारुल सहगल : अंबाला में नकली पत्ता चाट, सखुजा आइसक्रीम, बिहारी फ्रूट बीयर, प्रकाश कॉफ़ी और टोस्ट, पूरण सिंह का मटन, प्रेम कढ़ी चावल आदि एकदम यूनिक है और लगभग आधे किलोमीटर के क्षेत्र में ही है. अंबाला रेलवे स्टेशन से थोड़ा अंदर सदर बाजार में आराम से इन सबका स्वाद लेते हुए आगे जाया जा सकता है.

ओम प्रकाश शर्मा : Food Blogger बनने के लिए शुरुआत कैसे करनी चाहिए?

पारुल सहगल : मान लीजिए आपको अगले हफ्ते कहीं किसी नए शहर में जाना है और आपको रोज रात में सपने इसी बात के आते हैं कि वहां पर कौन सा भोजन करना है तो समझ लीजिए कि आप फ़ूड ब्लॉगर बनने वाले हैं.

किसी भी पर्यटन स्थल पर जा रहे हैं तो वहां मुख्य बाजार से हटकर गलियों में स्थानीय दुकानें ढूंढकर वहां का स्वाद लीजिए और वह खाइए जो वहां के लोकल लोग खाते हैं. आप फ़ूड एक्सप्लोर करने लगेंगे. अब ब्लॉगर बनने का अगला स्टेप है जो चीज आपने एक्सप्लोर की है उसे लिखना और व्यक्त करना. यह हर किसी का अपना-अपना सिग्नेचर स्टाइल होता है.

ओम प्रकाश शर्मा : क्या कभी कोई ऐसी डिश सामने आई है जिसे देखकर आपके मुंह में पानी आया हो. पर किसी कारणवश आप उसे खा नहीं सके हो?

पारुल सहगल : जी, अभी तक ऐसा नहीं हुआ है. कई बार ऐसा होते-होते रह गया, पर जैसे भी करके स्वाद को मिस नहीं होने दिया. एक बार तो स्वाद पूरा करने के चक्कर में ट्रेन मिस होते-होते बची थी. स्वाद का जुनून इतना है कि अमेरिका में कैक्टस का बना हुआ टैको और सांप के मांस वाला पिज्जा भी चख चुका हूं.

ओम प्रकाश शर्मा : वाह, तभी आप देश के उभरते हुए फ़ूड ब्लॉगर बने हैं.

अगर आज के समय की आप 30 साल पहले से तुलना करें तो फ़ूड इंडस्ट्री बहुत उन्नत हो गयी है. इसे आप ठीक मानते हैं या गलत? आजकल ज्यादातर लोग कम उम्र में ही स्वास्थ्य संबंधी किसी न किसी समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं. क्या आप इसे फ़ूड इंडस्ट्री के विस्तार का दुष्परिणाम मानते हैं?

पारुल सहगल : फ़ूड इंडस्ट्री का विस्तार और फ़ूड क्वालिटी का क्षरण दो अलग-अलग बातें हैं, जो की दुर्भाग्य से साथ-साथ चलती आई है. उदाहरण के लिए आज से तीस साल पहले दिल्ली में किसी ने मोमोज का नाम नहीं सुना था, जबकि पूर्वोत्तर में यह तब भी खाया जाता था. इसी प्रकार जयपुर में तीस साल पहले इडली-बडा नहीं मिलता था या मिलता भी था तो इतना प्रचलित नहीं था. जबकि दक्षिण भारत का यह स्टेपल फ़ूड है. यह तो हुआ फ़ूड इंडस्ट्री का विस्तार…

अब फ़ूड क्वालिटी की बात करें तो आज से तीस साल पहले शुद्ध मक्खन के अलावा किसी प्रकार का मक्खन नहीं मिलता था जबकि आज मक्खन जैसा दिखने वाला वेजिटेबल और पशु फैट सौ रुपए किलो मिल रहा है. जबकि असली मक्खन चार सौ रुपए किलो है. इसी प्रकार लगभग हर रॉ मैटिरियल का घटिया वेरियंट मार्केट में उपलब्ध है जिसके कारण बाजार के खाने की गुणवत्ता गिरी है.

इसे भी पढ़े : एक ऐसा मंदिर, जहां अपने भक्त के नाम से मशहूर हुए भगवान

ओम प्रकाश शर्मा : कई लोग लिट्टी चोखा, बाटी चोखा और दाल बाटी चूरमा में कंफ्यूज हो जाते हैं. आप बताइए ये सभी एक दूसरे से कैसे अलग है?

पारुल सहगल : लिट्टी-चोखा और दाल बाटी में काफी समानताएं हैं. परन्तु यह अलग-अलग है. लिट्टी जो है वो आटे के अंदर सत्तू भरकर आग के ऊपर सेंक कर पकायी जाती है जबकि बाटी को जलते हुए कोयले या लकड़ी के नीचे दबा कर सेंका जाता है. लिट्टी को बैंगन और आलू के चोखे के साथ खाया जाता है और बाटी को दाल में तोड़कर डाला जाता है.

ओम प्रकाश शर्मा : पूर्वोतर भारत में शाकाहारी पर्यटकों के लिए कौन से व्यंजन उपलब्ध हैं. सम्पूर्ण भारत में क्या कोई स्थान है जहां शाकाहारी पर्यटकों को भोजन की उपलब्धता का संकट हो सकता है?

पारुल सहगल : प्रैक्टिकली विश्वभर में जहां-जहां पर आलू उपलब्ध है, वहां पर शाकाहारी व्यक्ति के लिए भोजन उपलब्ध होना संभव है. पूर्वोतर में मोमोज, नूडल, पिट्ठा, थुपका आदि के शाकाहारी वेरियंट लगभग सब जगह उपलब्ध है. हां, वहां थोड़ा ध्यान देना पड़ता है और वेज खाने के लिए अलग से बोलना पड़ता है.

ओम प्रकाश शर्मा : ऐसा कहा जाता है कि मुंबई का खाना कई सांस्कृतिक समन्वयों की धरोहर है. इसे हम कहां और कैसे देख-समझ सकते हैं?

पारुल सहगल : ओह… सस्ते भोजन के लिए मुंबई मेरा प्रिय शहर है. शायद भारत का ये एकमात्र शहर है जहां आज भी 15-20 रुपए में कई प्रकार के भोजन ऑप्शन्स उपलब्ध हैं. मुंबई का स्थानीय खाना इस शहर के कोने-कोने में आपको मिल जायेगा. मुंबई अपने आप में इतनी बड़ी है कि यहां दो-दो बार फ़ूड टूर करने के बाद भी केवल 5 प्रतिशत ही कवर कर पाया हूं. यहां उल्हासनगर, कल्याण, ठाणे, विरार आदि मुम्बई के उपनगर मुख्य मुंबई के मुकाबले अधिक विविध स्वादों से भरे हुए हैं.

ओम प्रकाश शर्मा : अच्छा, अब ये बताइए कि भौगोलिकता खाने की संस्कृति को गढ़ती है, प्रसिद्ध लाल मांस इससे किस तरह जुड़ा है?

पारुल सहगल : लाल मांस शुरू में जंगली शिकार जैसे कि जंगली सूअर, भालू आदि के मांस से बनाया जाता था और शाही परिवारों को ही उपलब्ध था. हालांकि मुझे इसका स्वाद चखने का अवसर अभी तक नहीं मिल पाया है.

इसे भी पढ़े : कुल्हड़ की चाय और गंगा का वो किनारा…

ओम प्रकाश शर्मा : मुझे ये जानना है कि किस शहर का खाना सबसे ज्यादा शुद्ध एवं स्वादिष्ट लगा है आपको?

पारुल सहगल : ईमानदारी से बताऊँ तो अपने पैतृक शहर लुधियाना का भोजन मुझे सबसे शुद्ध और स्वादिष्ट लगा है. ऐसा शायद इसलिए कि वहां के भोजन और हर फ़ूड अड्डे को बचपन से जाना पहचाना है.

ओम प्रकाश शर्मा : अब हम कार्यकम के समापन की ओर है. इस चर्चा को एक स्वादिष्ट मोड़ पर छोड़ते हुए एक अंतिम सवाल का जवाब जानना चाहता हूं.

सुबह-ए-बनारस का अंदाज कचौड़ी-आलू कद्दू की तरीदार सब्जी वाले पुरईन पत्ते और जलेबी के दोने से खिसक कर कहां और कैसे खिंचा चला जा रहा है? मतलब बनारस का खाना कैसे बदल रहा है.

पारुल सहगल : बनारस का खाना और बनारसी खाना दो अलग-अलग कुजीन है. ठेठ बनारसी खाना आज भी वैसा ही है. चाची की कचौड़ी, राम भंडार की पूरी, पहलवान की लस्सी, रसवंती की मिठाई और लौंगलता यह ठेठ बनारसी स्वाद है जो कि नहीं बदले. बाकी हरेक शहर की ही तरह बनारस में भी मॉडर्न फास्टफूड फ़ूड आदि का चलन बढ़ रहा है.

ओम प्रकाश शर्मा : पारुल भैया, आपसे बात करना मेरे लिए एक अलग अनुभव था. बहुत आनंद आया. स्वाद के प्रति आपके जुनून को सलाम. बहुत आभार आपका, आज की चर्चा के लिए. आप बहुत जल्द एक किताब लिखें, ऐसी कामना और शुभकामना है.

पारुल सहगल : आपसब को मेरी ओर से शुभकामनाएं और दिल्ली आने पर मिलने के लिए सादर निमंत्रण.

इसे भी पढ़े : पटना में गंगा आरती की एक शाम

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here