पितृपक्ष मेला के दौरान पिंडदान के लिए गयाधाम आना चाहते हैं, वहां कोरोना का क्या हाल है? फोन पर ऐसे सवाल हर दिन गयाजी के पंडों से पूछे जा रहे हैं. कोरोना संकट के दौरान भी लोगों को अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की चिंता लगी हुई है. ऐसे में परदेसी गयापालों से पूछ रहे रहे हैं कि अभी वहां के क्या हालात है. हर साल लगने वाला प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला इस बार शुरू होगा या नहीं.

पंडे भी बड़े मायूस होकर जवाब दे रहे हैं कि इस बार पिंडदान नहीं हो पाएगा. कोरोना संक्रमण को देखते हुए बिहार सरकार ने पितृपक्ष मेला स्थगित कर दिया है. इस तरह का जवाब सुनकर मेले में मोक्षस्थली गया आने की चाहत रखने वाले लोग निराश हो जा रहे हैं.

एक सितंबर से शुरू हो रहा पितृपक्ष

इस साल एक सितंबर से पितृपक्ष शुरू होने वाला है. लेकिन कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए पहले ही बिहार सरकार ने 6 सितंबर तक लॉकडाउन बढ़ा दिया है. इधर, पिंडदान को लेकर देश – विदेश से पंडों के पास हर रोज करीब 10 से 15 कॉल्स आ रहे हैं. पितृपक्ष शुरू होने में अब काफी कम वक़्त बचा है. लिहाजा,  बाहर रहने वाले लोग अपने – अपने पंडों से फोन करके बात कर रहे. इस वक़्त तो गयाधाम के विष्णुपद इलाके की रौनक देखते बनती थी. इसी इलाके में अधिकतर गयापाल रहते हैं. पितृपक्ष के लिए अभी तक इन पंडों के घरों  में तैयारियां शुरू हो जाती थी. अपने जजमान को घरों में ठहराने की तैयारी में पंडों का पूरा परिवार जुट जाता था. लेकिन, आज कोरोना के कारण वहां सन्नाटा पसरा है.

गया पितृपक्ष मेले पर लगी रोक  

देश समेत दुनिया भर से करीब छह लाख से भी अधिक हिंदू धर्मावलंबी अपने पितरों को मोक्ष दिलाने हर साल गया आते हैं. लेकिन राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग जो हर साल पितृपक्ष मेले का आयोजन करता था, उस विभाग ने कोरोना के संभावित खतरों को देखते हुए इस बार मेले पर रोक लगा दी है. राजस्व विभाग ने अपने लेटर में भारत सरकार के गृह मंत्रालय और बिहार सरकार के गृह विभाग के आदेश का जिक्र किया है. इसमें लिखा है कि विदेशों और देश के कोने – कोने से लोग पिंडदान करने गया पहुंचते हैं, ऐसे में कोविड – 19 के कारण पितृपक्ष मेले में आने वाले पिंडदानियों द्वारा सोशल डिस्टेंस के पालन में होने वाली मुश्किल और संक्रमण को देखते हुए पितृपक्ष मेला स्थगित किया गया है.

गया में पिंडदान करने का महत्व

हिन्दू धर्म में अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान एक अहम् कर्मकांड माना जाता है. वैसे तो देश के हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, जगन्नाथ पुरी, बद्रीनाथ सहित 55 स्थानों पर पिंडदान किए जाते हैं, सबका अपना-अपना महत्त्व है, लेकिन गया में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान तो खुद भगवान राम ने भी किया है. माना जाता है कि सीता जी के साथ भगवान राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था. ऐसा कहा जाता है कि बिहार के गया में फल्गु नदी के तट पर अगर आप अपने पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध करते हैं तो इससे उन्हें मोक्ष मिलता है, और फिर उन्हें जन्मों के बंधन से भी हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है. पितृपक्ष के दौरान गया में पिंडदान करने का खास महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि ये भगवान विष्णु का नगर है. यहां भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में मौजूद रहते हैं. विष्णु पुराण में भी इसका जिक्र है. इसमें कहा गया है कि पितृपक्ष में गया में जिन लोगों का पूरी श्रद्धा के साथ पिंडदान किया जाता है, वह सीधा पूर्वजों तक पहुंचता है और उनके स्वर्ग जाने का रास्ता तय करता है. गरुड़ पुराण में भी ये वर्णन है कि पिंडदान करने अगर आप गया जा रहे हैं तो घर से निकलने पर गया तक चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्ग की एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं.

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यही कारण है कि मोक्षधाम गया जी में पिंडदान करने सालों भर देश – विदेश से लोग आते हैं. लेकिन, आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में लगने वाले 15 दिनों के पितृपक्ष मेले में पिंडदानियों का सैलाब उमड़ता है. पितृपक्ष में एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और सत्रह दिनों का पिंडदान होता है. ज्यादातर लोग एक और तीन दिन का कर्मकाण्ड करते हैं.

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