अभी सावन का महीना चल रहा है. भगवान शिव को ये माह काफी प्रिय है. इस पवित्र महीने में 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का अलग महत्व है. कहा जाता है भगवान भोलेनाथ जहां-जहां स्वयं प्रकट हुए, उन 12 जगहों पर स्थित शिवलिंगों की ज्योति रूपों में पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम जपने और इनके दर्शन करने वाला व्यक्ति काफी किस्मत वाला होता है. तो चलिए सावन के इस पावन माह में हिंदी ट्रेवल ब्लॉग के जरिए आप भी घर बैठे कीजिए देश के इन 12 ज्योतिर्लिंगों की सैर…
सोमनाथ में स्थित ज्योतिर्लिंग देश का ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में पहला ज्योतिर्लिंग है. ये मंदिर गुजरात के काठियावाड़ में अरब सागर के किनारे है. शिव पुराण के मुताबिक जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था. तब चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति के लिए इसी स्थान पर तप किया था.
सोमनाथ में स्थित शिवलिंग की स्थापना का श्रेय चंद्रदेव को ही जाता है. चंद्रमा का पर्यायवाची शब्द सोम भी है, जिन्होंने भगवान शिव को अपना नाथ मानकर यहां उनकी आराधना की थी. इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को ‘सोमनाथ’ कहा जाता है. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को विदेशियों ने आक्रमण कर 17 बार इसे नष्ट किया, जिसके बाद हर बार इसका पुननिर्माण हुआ है.
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित है. इस शिवलिंग की खासियत है कि यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है. इस मंदिर में हर सुबह होने वाली भष्म आरती पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. शिप्रा नदी के तट पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग को महाकाल भी कहते हैं. ऐसा मानना है कि प्राचीन काल में यहीं से सम्पूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था. इस वजह से इस ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर कहा जाने लगा.
मान्यता यह भी है कि यहां भोलेनाथ ने स्वयं प्रकट होकर एक हुंकार मात्र से अत्याचारी दानव दूषण को जलाकर भस्म कर दिया था. इस मंदिर में जो कोई भी सच्चे मन से कुछ मांगता है, बाबा महाकाल उसे जरुर पूरा करते हैं.
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के शहर इंदौर के पास है. जिस स्थान पर ये ज्योतिर्लिंग विराजमान है वहां से नर्मदा नदी बहती है. नर्मदा के दो धाराओं में बंट जाने से बीच में बने टापू को मान्धाता पर्वत या शिवपुरी कहते हैं.
नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण होकर बहती है. दक्षिण वाली धारा ही मुख्य धारा माना जाती है. पहाड़ी के चारों ओर नर्मदा नदी बहने से यहां ओम आकार का निर्माण होता है. इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम ओंकारेश्वर पड़ा.
पर्वतराज हिमालय की केदार चोटी पर स्थित हैं केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग. चोटी के पश्चिम भाग में मंदाकिनी नदी के तट पर केदारेश्वर महादेव का मंदिर है. चोटी के पूर्व में अलकनंदा के तट पर बद्रीनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है. अलकनंदा और मन्दाकिनी दोनों नदियां नीचे आकर रुद्रप्रयाग में आकर मिलती हैं. दोनों नदियों की संयुक्त धारा जब और नीचे आती हैं तो यहां देवप्रयाग में आकर भागीरथी गंगा में मिल जाती हैं.
इसके कारण पवित्र गंगा नदी में स्नान करने वालों को केदारेश्वर और बद्रीनाथ के चरणों को धोने वाले जल का स्पर्श आसानी से हो जाता है. केदारनाथ को भगवान शिव अपना आवास मानते हैं. बाबा केदारनाथ मंदिर की ऊंचाई समुंद्र तल से 11 हजार 7 सौ फीट है. वहीं मंदिर परिसर से डेढ़ किमी दूर बनी ध्यान गुफा की ऊंचाई करीब 12 हजार 250 फीट है.
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे शहर से सौ किलोमीटर दूर सह्याद्री पर्वत पर है. 3250 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा है. इस कारण इस मंदिर को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है.
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा किनारे स्थित है. काशी वो नगरी है, जिसके कण – कण में शिव शंभू का वास है. मान्यता है कि भगवान शिव ने इस ज्योतिर्लिंग को खुद बनाया. काशी को मोक्षदायिनी कहा जाता है. अपने जीवन का अंतिम समय भोले बाबा की शरण में बिताने के लिए लोग यहां दूर-दूर से आते हैं.
ऐसी मान्यता है कि इस नगरी में प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस शहर की रक्षा खुद भगवान भोलेनाथ करते हैं. मान्यता है कि प्रलय आने पर भी ये स्थान सुरक्षित बना रहेगा. सभी शिवलिंगों के पूजन से सारे जन्म में जितना पुण्य मिलता है, उतना श्रद्धा के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर में जाकर सिर्फ एक बार ही दर्शन – पूजन करने पर मिल जाता है.
महाराष्ट्र के नासिक शहर से 35 किलोमीटर दूर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग गौतमी नदी के किनारे स्थित है. इसके सबसे निकट ब्रह्मगिरी पर्वत है. इसी पर्वत से गोदावरी नदी, जिसे यहां गौतमी नदी भी कहते हैं, वो शुरू होती है. कहा जाता है कि शिव को महर्षि गौतम के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा.
त्र्यंबकेश्वर की विशेषता यह है कि यहां एक साथ तीन छोटे – छोटे शिवलिंग स्थापित हैं. इन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीन देवों का प्रतीक माना जाता है. काले पत्थरों से बना ये ज्योतिर्लिंग देखने में काफी सुंदर लगता है.
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड में जहां स्थित है उसे ‘देवताओं का घर’ यानी देवघर कहते हैं. इस ज्योतिर्लिंग को प्राप्त करने के लिए रावण ने कैलास पर्वत पर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी. द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग ही ऐसा है जहां शिव और शक्ति दोनों विराजमान हैं.
पुराणों के अनुसार सुदर्शन चक्र के प्रहार से यहीं पर मां शक्ति का ह्रदय कट कर गिरा था. इस कारण ये 51 शक्तिपीठों में से एक है. सावन महीने में श्रावणी मेले के दौरान यहां गंगाजल चढ़ाने के लिए कांवरियों की खूब भीड़ जुटती है. यहां आने वाले शिवभक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस कारण इस शिवलिंग को ‘कामना लिंग’ भी कहते हैं.
गुजरात में द्वारका से 17 मील दूर है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग. शास्त्रों में भगवन शिव को नागों का देवता बताया गया है. नागेश्वर का पूर्ण अर्थ भी नागों का ईश्वर है. प्रचलित कथा है कि भोलेनाथ ने अपने भक्त सुप्रिय को पाशुपत अस्त्र देकर दारुक नामक राक्षस का अंत करवाया था. अपने अनन्य भक्त की पुकार सुनकर भगवान शिव कारागार में चमकते सिंहासन पर ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे.
द्वारिका के नजदीक स्थित इस मंदिर परिसर में भगवान शिव की ध्यान मुद्रा में एक बड़ी ही मनमोहक और विशाल प्रतिमा है. इसकी वजह से ये मंदिर तीन किलोमीटर दूर से ही दिखाई देने लगता है.
तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थित ये स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक है. इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना खुद भगवान राम ने की थी. राम द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को रामेश्वरम नाम दिया गया.
इस मंदिर का संबंध रामायण से है. ऐसी मान्यता है कि लंका पर चढ़ाई से पहले श्रीरामचंद्र जी ने यहां बालू से शिवलिंग बनाकर इसकी पूजा की थी. रामेश्वरम मंदिर को रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. भारत के उत्तर में काशी शहर का जितना महत्व है, ठीक वही मान्यता दक्षिण में रामेश्वरम की है.
महाराष्ट्र के औरंगाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर वेरुल नामक स्थान पर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग है. घुष्मेश्वर मंदिर अजंता और एलोरा की गुफाओं के निकट स्थित है. भगवान शिव का ये आखिरी ज्योतिर्लिंग उनकी परम भक्त घुष्मा की भक्ति का स्वरुप है. जिसके पुत्र को पुन: जीवित करने के लिए ही भगवान शिव यहां प्रकट हुए थे. इस मंदिर के पास एक सरोवर है, जो शिवालय के नाम से जाना जाता है. इसी तालाब में भक्त घुष्मा अपने बनाये शिवलिंगों का विसर्जन करती थी.
इसी सरोवर के किनारे उसे अपना पुत्र जीवित मिला था. लोगों का विश्वास है कि जिन्हें संतान सुख नहीं मिल रहा वो अगर यहां आकर भगवान के दर्शन कर लें तो भोलेबाबा उनकी हर मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं.
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