द्वारिका घुमने के बाद ओखा-अहमदाबाद पैसेंजर ट्रेन से सुबह सात बजे के करीब वांकानेर स्टेशन उतरे. वांकानेर गुजरात में राजकोट जिले का एक शहर है. वांकानेर का नामाकरण इसके स्थान के नाम पर हुआ है.
मच्छु नदी के पानी जिसे ‘नेर’ कहते हैं, उसके मोड़ यानि ‘वांका’ पर स्थित होने के कारण इस शहर को ‘वांकानेर’ कहा जाता है. इसका एक और नाम झालावर भी है, क्योंकि पहले इस शहर पर झाला राजपूतों का राज था. वांकानेर शहर का विकास राजा अमर सिंह, जो कला और शिल्प के महान संरक्षक कहे जाते हैं, उनके शासन काल में ज्यादा हुआ. यहाँ जैसे ही ट्रेन से उतरे तो देखा कि अरविन्द मौसा जी अपनी गाडी के साथ हमें रिसीव करने आये हुए थे. घर जाने के दौरान रास्ते भर उनसे सोमनाथ और द्वारिका दर्शन की ही बातें होती रही. बीच बीच में मौसा जी वांकानेर शहर की जानकारियां भी हमलोगों को दे रहे थे. घर पहुँच कर मौसी जी और दादी जी से मिले. फिर थोड़ी देर बाद फ्रेश होने चले गये. कुछ महीने पहले ही मौसा जी नागपुर से ट्रांसफर होकर इस शहर में आये थे. नागपुर में तो हमसब दो तीन दफा उनके यहाँ घूम आये थे पर यहाँ पहली बार हमारा आना हुआ.
सो, घर देखने की उत्सुकता इस कदर थी कि तुरंत हर कमरे में घूमते हुए छत तक चले आये, …अरे यहां से जो भी दिख रहा है सब कुछ जाना पहचाना लगा. याद आया कि अहमदाबाद से सोमनाथ जाते वक़्त वांकानेर होते हुए ही तो गुजर रहे थे उस वक़्त ट्रेन की खिड़की से इन्हीं नजारों से रूबरू हुए थे. तब हमारी आंखों के सामने से मुन्नी आंटी का यह घर भी गुजरा था लेकिन हम पहचान नहीं पाए. खैर फिर कभी इधर से बाइ ट्रेन गुजरना हुआ तो याद रखूँगा.
आंटी ने ब्रेक फ़ास्ट में इडली बना रखा था जिसे खाने के बाद थोड़ी देर आराम किया फिर स्कूटी से निकल गए वांकानेर शहर घुमने. वैसे वांकानेर में घुमने लायक कई जगह है. जैसे गायत्री मंदिर, महादेव मंदिर, स्वामी नारायण मंदिर, नागाबाबा मंदिर, महल आदि पर हमलोग वहां उन मंदिरों में नहीं गए. सोचा इतने दिनों से मंदिरों के ही तो दर्शन कर रहे है.
इसलिए यहां के बाजारों और लोगों से रूबरू हुआ जाए. यहां भी सड़कों पर अतिक्रमण था और बाजार में काफी भीड़ थी. ट्रैफिक नदारद और बिना हेलमेट के ही लोग फर्राटे से बाइक चला रहे थे. इन संकरे रास्तों पर स्कूटी चलाने का मजा मैंने और अनिल जीजू दोनों ने लिया. कभी वो चलाते तो कभी मैं स्कूटी चलाने लगता. वैसे यह शहर देखने में छोटा लगा. पर यहां की खासियत के बारे में मौसा जी ने बताया था कि यहां आपको हर छोटे-बड़े बैंकों के ब्रांच और उसके एटीएम मिलेंगे. घूमते वक़्त हमें भी कई बड़े बैंकों के ऑफिस नजर आये, जो इस शहर की समृद्धि दर्शा रहे थे. यहां लोगों के पास पैसा तो है लेकिन वो उनका प्रदर्शन नहीं करते. इसके अलावा, वांकानेर पहाड़ियों, बिज़नस और सेरामिक इंडस्ट्रीज के लिए भी मुख्य रूप से जाना जाता है.
यूँ ही यहां के मार्केट का एक चक्कर लगा कर हमलोग वापस घर लौट आये. इतने दिनों से सिर्फ घूमना फिरना ही हो रहा था और बाहर होटल के खाने खा-खा कर हमलोग ऊब चुके थे.

पर यहां मौसी जी के घर में रुकना हमें काफी रिलैक्सिंग लगा. एक तो इतने दिनों बाद सब से मुलाकात भी हो गयी और फिर मौसी के बनाये कई तरह के लजीज खानों का लुत्फ़ भी जम कर उठाया. दिन भर हमने यहां खूब मस्ती की. ख़ुशी और स्नेहा भी जब मौका मिलता दोनों कमरे की सीलिंग से लटके झूले पर झूलने लग जाती.
शाम में आंटी के फैमिली फ्रेंड जो की पटना के ही रहने वाले थे, उनके यहां चलना था. जब से उन्हें आंटी ने बताया था कि पटना से हमलोग आने वाले है तब से वो भी हमलोग से मिलना चाह रहे थे. वाकई अच्छा लगता है जब हम कहीं दूर रहते है और वहां कोई अजनबी भी अपने गांव, अपने शहर, अपने राज्य या अपने देश का मिलता है तो जाने क्यों वह भी अपना सा लगने लगता है. अपनी धरती की मिटटी से जुड़ा यह प्रेम ही हमें एक-दुसरे से जोड़े रखता है.
शाम में हम सभी उनके यहां पहुंचे. उन्होंने भी खातिरदारी करने में अपनी कोई कसर नहीं छोड़ी. इतने कम वक़्त में ही मेलजोल ऐसा हो गया कि उनके घर से लौटते समय ऐसा फील हो रहा था कि हम भी उन्हें काफी पहले से जानते हैं. रात करीब 9 बजे हमलोग वापस घर लौटे.
अगले दिन सुबह 6:52 बजे वांकानेर से सूरत के लिए सूरत इंटरसिटी में हमारा रिजर्वेशन था. मौसा जी अपने ऑफिस की गाड़ी से हमलोगों को स्टेशन छोड़ने आये थे. उनसे विदा लेते वक़्त बस यही महसूस हो रहा था कि वक़्त कितनी तेज रफ़्तार से चलता है, अभी तो आये थे और इतनी जल्दी समय जाने कैसे बीत भी गया. यहां कहने को हम लोग 24 घंटे ही रुके पर इन्हीं 24 घंटे में मिनट दर मिनट की ढेर सारी यादों के साथ अब हम देश के पच्छिम में स्थित सूरत शहर की ओर बढ़ रहे थे.
पुराने समय में सूरत पश्चिम भारत के बड़े और प्रमुख बंदरगाहों में से एक था. जो गुजरात के प्रवेश द्वार का भी काम करता था. 1573 में मुग़ल शासक सम्राट अकबर ने सूरत में बंदरगाह के महत्व को देखा और उस वक़्त से यह एक मुख्य व्यापारिक बंदरगाह में तब्दील हो गया. सूरत गुजरात का सबसे दक्षिणी जिला है, इसके बाद महाराष्ट्र राज्य पड़ता है. आधुनिक सूरत की स्थापना पंद्रहवीं सदी के अंतिम वर्षों में हुई. सूरत के बारे में कहा जाता है कि इसे बसाने में एक हिन्दू ब्राह्मण जिसका नाम गोपी था, उसका काफी योगदान रहा. वर्तमान में यह शहर मुख्य रूप से कपड़ा उद्योग और हीरे की कटिंग और पोलिशिंग के लिए पहचाना जाता है. यही कारण है कि सूरत को सिल्क सिटी और डायमंड सिटी जैसे उपनाम से भी पुकारा जाता है. सूरत की बड़ी खासियत यह है कि विश्व के सभी बाजारों में जितना डायमंड काटने और उन्हें तराशने का काम होता है उसका 92 प्रतिशत अकेले सूरत में होता है.
रेल की रफ़्तार के बीच मैं भी अपने मोबाइल में बिजी था. सूरत के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकठ्ठा कर लेना चाहता था ताकि पहली बार जब इस शहर की सुरत देखूं तो इसकी अहमियत व इसका महत्त्व मेरे जेहन में जिन्दा रहे.
सूरत में हमें जीजू के क्लोज फ्रेंड संजय फ़र्नांडिस जी के यहां रुकना था. दोपहर तक़रीबन पौने तीन बजे हमारी ट्रेन सूरत स्टेशन पर आ कर लगी. जीजू के फ्रेंड संजय जी हमें लेने सूरत स्टेशन पर आये हुए थे. स्टेशन से उनका घर काफी दूर था. हम सूरत शहर के विभिन्न सड़कों, बाजारों और फ्लाई ओवर ब्रिज से गुजरते हुए करीब आधे से पौने घंटा बाद उनके घर पहुंचे. उनके यहां भी हम सभी को खूब मजा आया. जीजू के जो दोस्त है उनकी पूरी फैमिली को जानवरों से खासा लगाव है.
इसलिए घर में दो मेल-फीमेल डॉग जेकू और जैकलीन के साथ एक्वेरियम में कई सुन्दर सुन्दर रंगबिरंगी मछलियां तैरती दिखी. कुत्तों से हमेशा डरने वाली ख़ुशी और स्नेहा जब जेकू और जैकलीन को अपने इतने पास देखी तो उनकी हालत ही खराब हो गयी, लेकिन फिर धीरे धीरे उनका डर भी दूर हो गया. दोपहर के खाने के बाद हम सभी यह तय करने में लग गए कि अब आगे कहां घुमने चला जाए. वीकेंड को लेकर वो लोग भी बाहर कहीं घुमने को लेकर खूब उत्साहित थे. इसलिए तय हुआ की क्यों न दमन चला जाए. वहां अरब सागर के बीच पर लहरों में नहाने का मजा उठाया जाए. तो यह प्रोग्राम फाइनल हो गया कि कल सुबह हमलोग दमन के लिए निकलेंगे.
अब तक शाम हो चली थी और हमें सूरत शहर घुमने निकलना था. सभी जल्दी जल्दी तैयार हुए निकल पड़े तीन बाईकों से शहर का जायजा लेने. यहां हमलोग एक मॉल में गए. वहां बड़े शॉपिंग में बिजी हो गए तो बच्चे 3डी विडियो का मजा लेने लगे. बाद में आइसक्रीम का लुत्फ़ उठाते हुए माल से बाहर निकल गए.
शहर के रास्तों से गुजरते हुए अब तक यहां की भी स्थिति समझने लगा था. पटना की तरह यहां भी रोड पर काफी रश था. ट्रैफिक की स्थिति भी काफी खराब दिखी. हालांकि यहां सडकें अच्छी खासी चौड़ी है. यहां पूरे सड़क का एक भाग सुरक्षित है जवाहरलाल नेहरु नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन के अंतर्गत चलने वाली स्पेशल एसी बसों के लिए. जो शहर के विभिन्न प्रमुख चौक-चौराहों से गुजरते हुए शहर के अन्दर का पूरा चक्कर लगाते है. यह सुविधा अच्छी लगी. इसके लिए बीच बीच में स्टेशन भी बना है जहां यात्री टिकट लेते है, बस का इन्तजार करते है और बस से उतरते है. रोड का एक किनारा इन बसों के लिए निर्धारित है, इस रास्ते पर कोई दूसरी गाड़ी नहीं चलती. सूरत के बीच से ताप्ति नदी होकर गुजरती है. इसलिए नदी के ऊपर यहां चार फ्लाई ओवर बने है, वहीँ पांचवे पुल का भी निर्माण हो रहा है. मॉल से आते वक़्त सरदार ब्रिज पर लोगों की भीड़ थी. लोग यहां रात में घुमने आते हैं. इनमें फैमिली से लेकर युवा जोड़े सभी थे. पुल के रास्ते में किनारे गाड़ियां खडी कर चाँद और बिजली की सम्मिलित रोशनियों से सजी ताप्ति नदी और शहर का लुभावना दृश्य काफी सुन्दर लग रहा था. बाद में पता चला कि डिनर करने के बाद रात में थोड़ी देर इन पुलों पर बिताना यहां के लोगों की आदत है. अब अगली सुबह हमारी यात्रा का अगला विस्तार दमन की ओर था, इसलिए वापस घर पहुंच कर हमलोगों ने डिनर लिया और फिर समा गए नींद के आगोश में.
..तो यह था दो शहरों का सिटी टूर. अब आगे आपको लिए चलेंगे एक बेहतरीन टूरिस्ट स्पॉट की ओर. भारत का केंद्रशाषित प्रदेश दमन, जहां खुले आकाश के नीचे और अरब सागर की उफान मारती ताकतवर लहरों के बीच डूबते-भींगते हुए जी भर कर अपने इस यात्रा को एन्जॉय किया. कैसा लग रहा है गुजरात यात्रा के ये विभिन्न चरण? आपके विचारों और प्रतिक्रिया का स्वागत है. तो डालिए न कमेंट बॉक्स में अपने सुझाव व शिकायतों के कतरन….