हमेशा की तरह इस साल भी गर्मी की छुट्टियों में कहीं बाहर घूमने का प्लान बनने लगा था. नीलू दी और अनील जीजू की प्लानिंग थी कि इस बार सब लोग छतीसगढ़ चलें. वहां अंबिकापुर में नानी और मामा मामी से मिलने के साथ – साथ घूमना फिरना भी हो जाएगा. प्लान तो बढ़िया था, फिर याद आया अरे, जिस डेट पर जाने की बात हो रही उस वक्त तो सुप्रिया की बुआ जी ने भी अपने गृह प्रवेश का निमंत्रण भेजा था. ऐसे में वहां भी जाना जरूरी था.

तो तय हुआ की नीलू दी और जुली दी की पूरी फैमिली इस समर वेकेशन छतीसगढ़ जाएंगे और इधर हमलोग यानी मैं, सुप्रिया और  हमारी 3 साल की बेटी जया झारखंड के गिरिडीह में अपनी गर्मी की छुट्टियां एन्जॉय करेंगे.

 

29 मई की सुबह 5:30 बजे हम पटना जंक्शन पहुंचे. जन शताब्दी ट्रेन में हमारा रिजर्वेशन था. पटना से कोडरमा तक जाने के लिए मुझे ये ट्रेन काफी अच्छा लगता है. सुबह करीब 6 बजे पटना से खुलती है और 9 बजे तक हमलोग कोडरमा उतर चुके रहते है. वैसे अब तो पटना से रांची वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन भी चलने लगी है तो अगली बार का सफ़र उसी से करेंगे. इधर जन शताब्दी ट्रेन अपने समयानुसार चल रही थी और बिलकुल टाइम से हमलोग कोडरमा उतर गए थे. यहां एक बोर्ड पर झुमरी तिलैया लिखा था, जैसे ही उस पर नजर पड़ी, मुंह से अचानक निकल गया अरे ये वही झुमरी तिलैया है क्या? मेरी आवाज सुनकर सुप्रिया ने टोका क्या हुआ? तो मैंने कहा अरे ये वही शहर है ना, जिसका कभी रेडियो में खूब जिक्र हुआ करता था. मन अतीत के गलियारों में चक्कर लगाने लगा, वो 90 के दशक की यादें, बचपन की बातें. टीवी नहीं, वो रेडियो का दौर था. लोग गाने सुनने के लिए अपनी फरमाइशें चिठ्ठी लिखकर ऑल इंडिया रेडियो को भेजा करते थे.

आप सुन रहे हैं विविध भारती का खास प्रोग्राम गीतमाला. अगला गीत है फिल्म वो कौन थी से, गाने के बोल हैं लग जा गले कि फिर ये… इस गाने की फरमाइश की है झुमरी तिलैया से…..

बचपन में रेडियो पर इस शहर का नाम खूब सुनने को मिलता था. ऑल इंडिया रेडियो पर गाना सुनने के लिए यहां के लोगों की इतनी फरमाइशें आई कि रेडियो ने झारखंड के इस शहर को पूरे देश में फेमस कर दिया.

Jhumri Telaiya आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि झुमरीतिलैया और कोडरमा में बहुत डिफरेंस नहीं है. अगर कोडरमा स्टेशन पर हैं तो आप कोडरमा में हैं. पर जैसे ही आप रेलवे स्टेशन से बाहर आते हैं झुमरी तिलैया पहुंच जाते हैं. अब अगर आपको यहां से कोडरमा शहर जाना है तो इसके लिए करीब 7-8 किमी की दुरी तय करना पड़ेगा तब जाकर आप कोडरमा पहुंचेंगे जहां जिला मुख्यालय है. अब ऐसे समझिए रेलवे स्टेशन कोडरमा. स्टेशन से बाहर निकलते ही झुमरी तिलैया, और फिर कोडरमा शहर जाने में 7 किमी का चक्कर लगाना. है ना दिलचस्प.

Koderma तो कोडरमा स्टेशन पर बैठ कर इन्हीं बातों की चर्चा करते हुए हमलोग अपना टाइम पास कर रहे थे. साथ ही सुप्रिया की बड़ी बुआ जी का इंतजार भी. दरअसल, बुआ अपनी गाड़ी से आ रही थी और प्लानिंग ऐसी बनी थी कि कोडरमा से हमलोग भी उनके ही गाड़ी से गिरिडीह तक चलेंगे.

कुछ देर के इंतजार के बाद ही उनका कॉल आ गया. स्टेशन के बाहर उनकी गाड़ी लगी थी, अब यहां से हमलोग गिरिडीह के लिए निकल पड़े.

गिरिडीह में नंदनी बुआ और फूफा जी ने काफी बड़ा और शानदार घर बनवाया था. इसके गृह प्रवेश से पहले तीन दिनों की पूजा रखी गई थी. इसी फंक्शन में शरीक होने हमलोग भी पहुंचे थे. पूजा पाठ के इस माहौल में तीन चार दिन कैसे बीत गए, पता भी नहीं चला.

जब सारे फंक्शन्स ख़त्म हो गए तो सुप्रिया की बड़ी दीदी यानी अनु दी के घर जाना हुआ. दरअसल, उनका ससुराल भी इसी शहर में है. यहां पहुंचे तो रवि भैया ने पारसनाथ जाने का प्लान बना दिया. बताने लगे कि यहां पारसनाथ की पहाड़ी झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी है. साथ ही ये जैन समाज का सबसे प्रमुख तीर्थ स्थल है. और सिर्फ इतना ही नहीं, यहां इस धर्म के दोनों श्वेताम्बर और दिगंबर पंथों के मंदिर बने हुए हैं, ऐसे में इस जगह की इम्पोर्टेंस और बढ़ जाती है.

Parasnath hills giridih Jharkhand  दुनिया भर में पारसनाथ ही अकेली ऐसी जगह है, जहां जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकर ने यहां मोक्ष प्राप्त किया था. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने भी इसी पहाड़ी के शिखर पर कठोर साधना और तप करके मोक्ष प्राप्त किया था. इन्हीं के नाम पर इस पहाड़ी का नाम पारसनाथ पड़ा. जैन धर्म के अनुयायी पारसनाथ पहाड़ी के शिखर को सम्मेद शिखर कहते हैं. इस पहाड़ी के नीचे जैनियों का एक छोटा-मोटा शहर बसा हुआ है. इसे ‘मधुबन’ के नाम से जाना जाता है.

वैसे बचपन में हमने भी भगवान महावीर की कहानियां पढ़ी थी. सामान्य ज्ञान की पुस्तकों से कई बार रटा मारकर याद किया था कि भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे. इन्होंने कैलाश पर्वत पर मोक्ष पाया था. वहीं, जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य चम्पापुरी, 22वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ ने गिरनार पर्वत और 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने बिहार के पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया था. बाकी के सभी 20 तीर्थंकरों ने इसी पुण्य पावन स्थल पर मोक्ष प्राप्त किया था.

फिर बचपन से लेकर युवावस्था तक मैं बिहार शरीफ में रहा, तो इस कारण भी बौद्ध और जैनियों के श्रद्धेय स्थलों नालंदा, राजगीर और पावापुरी कई बार घूम चुका हूं. पटना आया तो कॉलेज के दोस्तों के साथ वैशाली की यात्रा भी कर चुका था. अब ऐसे में गिरिडीह आया तो पारसनाथ जाने का मौका कैसे छोड़ देता. इसलिए मैंने भी हामी भर दी.

Parasnath Hills शाम में हमसभी चार गाड़ियों में सवार होकर पारसनाथ पहाड़ जाने के लिए निकले. हमारे पास समय की कमी थी. ऐसे में पारसनाथ पहाड़ पर स्थित मंदिर के दर्शन नहीं हो सकते थे. क्योंकि, तलेटी से शिखर तक तक़रीबन दस किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती. इस दुर्गम पहाड़ी पर गाड़ियां नहीं जा सकती. वैसे जानकारी के लिए बता दें कि जो लोग इतनी दूर पैदल चलने में असमर्थ होते हैं वे डोली का सहारा लेते हैं. डोली दो – चार व्यक्ति मिलकर उठाते हैं. पहाड़ी के नीचे मधुबन बाजार में आपको कई डोली वाले बैठे दिख जाएंगे.

Parasnath Temple Giridih Jharkhand  मधुबन पहुंचा तो देखा यहां दुनिया के सबसे भव्य मंदिर तलेटी तीर्थ का निर्माण कार्य चल रहा था. बताया गया कि ये क्षेत्र 29 तीर्थंकरों की भूमि है. इस वजह से यहां 29 मंदिरों का निर्माण हो रहा है. पूरा मंदिर परिसर सवा लाख स्क्वायर फीट में फैला हुआ है. निर्माणाधीन मंदिरों की खूबसूरती अभी से देखते बन रही थी. सारे मंदिर राजस्थान के मकराना मार्बल से बन रहे थे. यानी वही पत्थर जिससे ताजमहल बना हुआ है.

Giridih Jain Temple प्राचीन वास्तुकला के प्रयोग से यहां के मंदिरों का निर्माण किया जा रहा. साथ ही पत्थरों पर नक्कासी का काम भी देखने में काफी सुंदर लग रहा था.

मंदिर परिसर में ही गुफा जी मंदिर भी था. हमलोग वहां भी गए. यहां भी अभी काम चल रहा था, हालांकि कई मूर्तियों की स्थापना हो चुकी थी.

Parasnath Temple  तारक तलेटी मंदिर परिसर में स्थित कई मंदिरों के दर्शन कर हमलोग बाहर निकले. अब तक शाम गहरा चुकी थी. मधुबन के बाजारों में टहलते हुए यहां के कई धर्मशालाओं को भी हमने देखा.

ऐसे ही घूमते हुए हमारी नजर तीस चौबीसी मंदिर पर पड़ी. ये एक भव्य जिनालय है जहां भगवान पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा विराजमान है. साथ ही इस मंदिर में रत्नों से बनी चौबीस तीर्थंकरों की अद्भुत मूर्तियां भी स्थापित है.

तो मधुबन में मंदिरों के दर्शन करते करते समय का पता भी नहीं चला. शाम ढल कर रात में तब्दील हो रही थी. इधर मधुबन में घूमते – घूमते हमलोग भी थोड़ा थक गए थे. इसलिए मधुबन बाजार में ही स्थित श्री पार्श्वनाथ जलपानगृह आ गए. यहां हमने कुल्हड़ वाली चाय – कॉफ़ी का मजा लिया और फिर निकल पड़े गिरिडीह शहर की ओर.

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