दमन का खुबसूरत सफ़र तय कर सूरत लौटने में ही हमें रात हो गयी. फिर अगले दिन सूरत से वलसाड़ के लिए निकलना था. सुबह सूरत स्टेशन पहुंचे तो टिकट के लिए सारे काउंटर पर लम्बी लाइन लगी थी. फिर जब स्टेशन के अन्दर आये तो एक प्लेटफार्म के नीचे पटरियों पर नजर पड़ी. पटरियों के नीचे का फर्श पक्का था.
कही कोई उबड़ खाबड़ नहीं. सब सीमेंटेड. देखा सफाई करने वाले बड़ी आसानी से ट्रैक की सफाई कर रहे थे. वाकई में इससे सफाई करने में भी सहूलियत थी. मैं पटना जंक्शन की तुलना सूरत स्टेशन से करने लगा. वाकई हमारा शहर तो इसके सामने कुछ भी नही. खैर इतने देर में हमारी ट्रेन भी आ गयी. अब सूरत से हमलोग वलसाड़ जा रहे थे.. यह गुजरात का एक तटवर्ती जिला है, यही के संजान बंदरगाह के जरिये पारसी सबसे पहले आये थे. वलसाड़ अरब सागर, नवसारी व डांग जिला और महाराष्ट्र के बीच बसा है. इसलिए रास्ते भर गुजरात और महाराष्ट्र की मिली जुली संस्कृति देखने को मिल रही थी.
एक दो स्टेशन के बाद लोकल यात्रियों की भी भीड़ लगनी शुरू हो गयी जिनमें कोई गुजराती तो कोई मराठी में बातें कर रहा था. कुछ घंटों में ही हम लोग वलसाड़ स्टेशन उतर गए. आश्चर्य हुआ मात्र 30 रूपए में ऑटो वाले ने हमें अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचा दिया. वो भी रिज़र्व. पटना में तो यह संभव ही नहीं. यहां नीलू दी की ननद की बेटी सुषमा जी रहती है. हम उनके ही घर रुके थे. यहां कुछ देर आराम करने के बाद हमलोग निकल गए तीथल बीच की ओर..
यहां अरब सागर से हमारी फिर मुलाकात हुई… लेकिन यहां इसकी लहर दमन की अपेक्षा अधिक तेज थी. दमन के देवका बीच से वलसाड़ का तीथल बीच हमें ज्यादा पसंद आया. यहां का बीच वहां से ज्यादा साफ़ और सुन्दर था. तीथल समुंद्र तट चट्टानी नहीं था बल्कि सपाट और रेतीला था. यह तट अपने काले बालू के लिए जाना जाता है. यहां भी हमने जम कर मस्ती की.
तीथल बीच के किनारे ही साईं मंदिर और स्वामी नारायण का बेहद खुबसूरत मंदिर है. वलसाड़ वैसे तो एक छोटा शहर है पर इसकी खासियत काफी बड़ी है. यह शहर गुजरात की राजधानी गांधी नगर से 355 किलोमीटर और अहमदाबाद से 339 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, प्रसिद्ध मराठी नाटककार राम गणेश गडकरी और निरुपमा राय यानी कोकिला बेन वलसाड़ के ही थे. वहीँ यह शहर देश विदेश में अपने अलफांसों आम के लिए भी जाना जाता है. स्थानीय भाषा में इसे हापूस आम भी कहते है. संयोग तो देखिये आम के ही मौसम में गुजरात भी जाना हुआ इसलिए मीठे व रसीले अल्फांसो आम भी खूब छक कर खाने को मिला.
वैसे वलसाड़ में घुमने के लिए आपको परनेरा किला, शांति धाम मंदिर, साई मंदिर, स्वामी नारायण मंदिर, ताड़केश्वर मंदिर आदि कई दर्शनीय स्थल मिलेंगे… यहां आप तीथल समुंद्री किनारे पर अरब सागर की लहरों का मजा ले सकते हैं, पूजा अर्चना करने के लिए तीथल बीच से 2 किलोमीटर पर श्री स्वामी नारायण मंदिर है. यह अपनी सजावट और बनावट के लिए जाना जाता है. तो तीथल किनारे से महज 1.5 किलोमीटर पर साईं मंदिर है. यहां हर दिन पूजा होती है. शाम में एक बार फिर हमलोगों ने तीथल और इन मंदिरों की ओर रुख किया. दोपहर में जहां तीथल बीच पर सागर की लहरें काफी तेज थी शाम में तट से यह बहुत दूर जा चूका था. किनारे पर सिर्फ बालू और छोटे छोटे सीप व शंख बिखरे पड़े थे.. बच्चों के साथ मैंने भी कई सुन्दर सुन्दर स्टोन और सीपियां बटोरी… किनारे फैले गीले रेत पर अपने इस ब्लॉग का नाम भी लिख छोड़ा… अब बारी थोड़ी रिफ्रेश होने की थी और नारियल पानी से अच्छा और क्या ड्रिंक हो सकता सो पीने के साथ अपनी फोटोग्राफी भी चलती रही.
अगले दिन हम सभी ताड़केश्वर मंदिर गए. भगवान शिव का यह मंदिर एक बड़े भूभाग पर बना है. यह मंदिर अलग तरह के शिवलिंग के लिए चर्चित है. जैसे यहां जो शिव लिंग है वो ऊपर की ओर उठा नहीं बल्कि लेटा हुआ है. वहीँ एक खासियत यह भी है कि इस मंदिर में छत ही नहीं है. दिन में यहां सूर्य की किरणें हमेशा शिवलिंग पर पड़ती रहती है. इस मंदिर के बनने से पहले का इतिहास भी रोचक है. बहुत पहले वाकी नदी के उतरी किनारे पर जंगल होता था. उस जंगल में लोग अपनी गाय चराने ले जाते थे, उधर ही एक जगह पत्थर पर सारी गायें आकर दूध देती थी. इस घटना को जब कुछ लोगों ने देखा तो आश्चर्य चकित रह गए. कई लोगों ने सोचा की ये जो पत्थर है इसे तोडा जाए हो सकता है इसके नीचे कोई खजाना छिपा हो. जब लोग उस पत्थर को तोड़ने गए तो उस पत्थर के नीचे से भौरा निकल के सबको काट लिया. बाद में एक ग्वाला को लगा की ये शिवलिंग है इसकी पूजा की जाए.
उसके बाद इसका प्राण प्रतिष्ठा किया गया. मंदिर बनाने में एक घटना घटने लगी. जब भी इस मंदिर का छत बनाया जाता था, तो वो छत टूट जाता था. लकड़ी का भी बनाया गया पर वो जल गया… बाद में लोगों को ये समझ आया की इस शिवलिंग को सूर्य का प्रकाश चाहिए. तड़ का मतलब होता है सूर्य प्रकाश, यानी मुझे तड़ की जरुरत है तब से इसमें छत नहीं बना.
इस मंदिर में घूमते हुए हमने कई फोटोज लिए. हालांकि मंदिर के अन्दर फोटोग्राफी मना है. यह बात कुछ फोटो लेने के बाद पता चली. जब हमने वहां के दीवारों पर ऐसा न करने को लेकर लिखा देखा. खैर पूजा-पाठ कर के हमलोग वहां से निकले. कुछ ही दूर बढ़े थे कि बारिश होने लगी. वलसाड़ में बारिश प्राय: हर दिन हो ही जाती है. अरब सागर के किनारे बसा होने के कारण भी सालों भर यहां का मौसम सुहाना रहता है. वलसाड़ में रहते हुए ये दो दिन कैसे गुजर गए पता भी नहीं चला. और वो शाम भी आ गयी जब हमें वहां से रुखसत होना था. हमारा रिजर्वेशन मुंबई बांद्रा टी पटना वीकली एक्सप्रेस में था. ट्रेन का समय सात बजे था पर हमलोग वलसाड़ स्टेशन काफी पहले ही पहुँच गए थे. यहां स्टेशन पर समय बताने के लिए पुरानी बड़ी बड़ी घड़ियां लगी थी, उसे देख अच्छा लगा क्योंकि अब तो हर स्टेशनों पर छोटी छोटी लाल एलईडी लाइट वाली डिजिटल घड़ी ही दिखती है. कुछ देर स्टेशन पर चहलकदमी करते हुए, मैगजीन्स खरीदते हुए और हमलोगों को छोड़ने आये सुषमा और उनके हसबैंड रुपेश जी से बतियाते हुए बीता. करीब सात बजे के करीब हमारी ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर लगी. ट्रेन में चढ़ते हुए अब हमलोग सभी से विदाई ले रहे थे. पटना से दिल्ली होते हुए जिस गुजरात सफ़र पर हम निकले थे वह यात्रा वलसाड़ से पूरी हो रही थी. बर्थ पर हमने अपने लगेज को उसके जगह पर परमानेंट जमा दिया, क्योंकि अगले दो रात और एक दिन के लिए यह ट्रेन ही हमारा ठिकाना था.
पता भी नहीं चला पंद्रह दिनों की यह यात्रा कब और कैसे पूरी हो गयी. इस दौरान गुजरात और इसके कई शहरों को देखते, घूमते ऐसा बिलकुल भी नहीं लगा कि अपने बिहार को छोड़ किसी दुसरे स्टेट में हूं. आगे सिग्नल पर हरी बत्ती जल उठी. ट्रेन ने अपनी चाल बढ़ानी शुरू कर दी और इसी के साथ मैं भी खिड़की के बाहर गहराते अंधेरे में स्टेशन पर जलते उन पीले बल्वों की दूर जाती रौशनी को देखने लगा. जिसके साथ वो गुजरात भी हमसे दूर होता जा रहा था जिसकी मिटटी ने हमें अपनी सरजमीं में इतने दिनों की पनाह दी. देश के एक खुबसूरत राज्य से मिलकर वापस लौट रहा था…. दो रातों के सफ़र के बाद जब अगले दिन सुबह तीन बजे नींद खुली तो ट्रेन की खिड़की से बाहर का नजारा कुछ अपना सा लगा. ट्रेन पटना जंक्शन से थोड़े दूर पर थी. हलके हलके उजाले में महावीर मंदिर की वो उंची सुनहरे रंग की गुंबद नजर आ रही थी.
जिस पर नजर पड़ते ही मन ही मन उस भगवन को प्रणाम किया. जिनकी कृपा से हमारा यह सफ़र (गुजरात यात्रा का पहला पड़ाव- पटना से गुजरात भाया दिल्ली, गुजरात यात्रा का दूसरा पड़ाव – अक्षरधाम मंदिर, गुजरात यात्रा का तीसरा पड़ाव – सोमनाथ मंदिर, गुजरात यात्रा का चौथा पड़ाव – गिरजंगल और पोरबंदर शहर, गुजरात यात्रा का पांचवा पड़ाव – द्वारिकाधीश की नगरी, कुछ दिन गुजरात में यात्रा का पांचवा पड़ाव भाग- दो, गुजरातयात्रा का छठा पड़ाव – वांकानेर और सूरत शहर और गुजरात यात्रा का सातवां पड़ाव – दमन द्वीप) मजेदार और यादगार बीता.