वैसे तो अपने देश के कई राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चूका हूँ,पर पहली बार दक्षिण की ओर जाने का अवसर मिला. महाराष्ट्र की यह मेरी पहली यात्रा थी.दरअसल,मेरे बड़े मामा जी की बेटी की शादी थी.तो हमारी पूरी फॅमिली महीनों पहले ही जाने की तैयारियों में लगे थे.जाने की बेताबी और यात्रा का उत्साह ऐसा की दिन काटना भी मुश्किल हो रहा था.खैर आखिरकार वो पल आ ही गया और अपने भारी भरकम लगेज के साथ हम सभी पहुँच गए पटना जंक्शन.

सभी ट्रेन में अपनी रिजर्वेशन वाली सीट पर आसन जमा चुके थे.अपने सफ़र को और इंटरेस्टिंग बनाने के लिए मैं अपने साथ चेतन भगत की ‘रिवोल्यूशन 2020’ नोवेल भी साथ लाया था.इनकी सारी नोवेल्स तो मैंने पढ़ ली थी पर इसे नही पढ़ा था तो सोचा क्यों ना इसी से अपना टाइम पास कर लूँ.

‘रिवोल्यूशन 2020’ पढ़ते पढ़ते कब मैं इसकी गहराई में डूब गया,पता भी नही चला.दो लड़के और एक लड़की के बीच होने वाली दोस्ती,प्यार,जुनून,लक्ष्य,पत्रकारिता,इन्जीनियरिंग,पैसे कमाने की जदोजहद,मिशन,अपनापन इत्यादि कई ऐसे फैक्टर थे इसमें जिसने मुझे घंटो इससे जोड़े रखा.

वाराणसी की इस कहानी को पढ़ते – पढ़ते बीच में जैसे ही मैंने ट्रेन की खिड़की से बाहर झाँका तो अचंभित हो गया.खिड़की के उस पार वाराणसी स्टेशन का ही बोर्ड लगा था.

क्या अजीब संयोग था,मुझे इस बात का ध्यान नही था की मैं इस वक़्त धरती के उसी सबसे पुराने शहर,जो दो नदियों वरुणा और असी, के नाम से मिल कर बना है. और जहाँ लोग अपने पापों को मिटाने दूर दूर से आते है, वहां हूँ.

पर इस बात की ख़ुशी थी की इस वक़्त मैं जहाँ बैठा हूँ उसी शहर में ‘आरती’,’गोपाल’ और ‘राघव’ के प्रेम का ताना बाना बुना गया था.

ट्रेन अपनी रफ़्तार में चल रही थी और मैं भी ‘गोपाल’ के जिंदगी में आये एक एक बदलाव को महसूस करता,पढ़ता जा रहा था.

रेल की यात्रा वाकई बड़ी मजेदार होती है.उस पर से जब साथ में परिवार के सारे लोग हो तो फिर कहना ही क्या.मंजिल चाहे जितनी भी दूर हो सफ़र बड़े आराम से कटती है.

हमलोग भी यूँ ही हंसी – मजाक करते रास्ते में आने वाले हर एक स्टेशन से खाने पीने की चीजे खरीदते,एन्जॉय करते चले जा रहे थे.

दरअसल,प्रीति (मामा जी की बेटी) की शादी वर्धा में होनी थी.और हमारा रिजर्वेशन सेवाग्राम तक था,इसलिए हम सभी सेवाग्राम में ही उतर गए. यहाँ पहले से ही मामा जी कार लेकर पहुंचे हुए थे.उनके साथ ही हम सभी रवाना हो गए वर्धा की ओर….

 

वही वर्धा,जहाँ अगस्त 1933 में जेल से रिहा होने पर गाँधी जी ने अपने ‘पांचवे पुत्र’ सेठ जमनालाल बजाज के आग्रह पर स्थायी रूप से रहने का निश्चय किया था. सबसे पहले वह महिला आश्रम में ठहरे,फिर मगनवाडी आये और 1934 में श्री जमनालाल जी द्वारा दान में दी गयी भूमि पर अपना आश्रम सेगांव में स्थापित किया जो बाद में सेवाग्राम कहलाया.

जुलाई 1942 के दुसरे सप्ताह में कांग्रेस कार्य समिति ने वर्धा में “भारत छोडो” प्रस्ताव पास किया.अगस्त के पहले सप्ताह में गांधीजी अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति की बैठक में भाग लेने के लिए मुम्बई गये.महासमिति के इस अधिवेशन में कार्य समिति के निर्णय की पुष्टि की गयी और 8 अगस्त को ऐतिहासिक “भारत छोडो” प्रस्ताव पास किया गया.

पूना से रिहा होने के बाद 1944 में गांधीजी सेवाग्राम वापस आए.अप्रैल 1946 में वह क्रिप्स मिशन से बातचीत करने दिल्ली गए.उसके बाद एक बार की अल्प अवधि को छोड़ कर सेवाग्राम वापस नही आये.31 जनवरी 1948 को वह दिल्ली से वर्धा आने वाले थे,लेकिन 30 जनवरी की शाम गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गयी.

आज सेवाग्राम में गाँधी जी का वो आश्रम दर्शनीय स्थल बन चूका है,जहाँ उनकी हर एक वस्तु सहेज कर रखी गयी है,जिनका वो अपने रोज के जीवन में व्यवहार में लाते थे.

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