पटना से गुजरात भाया दिल्ली (यात्रा का पहला पड़ाव) के बाद अब हम अपनी यात्रा के दुसरे पड़ाव यानी दिल्ली से अहमदाबाद की ओर थे. दिल्ली से अहमदाबाद आने के दौरान भी हमारी यात्रा काफी मजेदार और यादगार रही. आश्रम एक्सप्रेस जैसे ही दिल्ली कैंट से चली, काले काले बादल और ठंडी हवाओं का झोंका भी साथ चल पड़ा. कुछ देर में ही बारिश शुरू हुई और मौसम खुशगवार हो गया.
सफ़र के दौरान ही हमें भूटान का एक परिवार मिला. आनंद अग्रवाल जी, जो भूटान से माउंट आबू जा रहे थे. इनका भी सीट हमारे ही कोच में था, सो बातचीत का सिलसिला ऐसा बढ़ा कि रास्ते में ही हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता कायम हो गया. बातों-बातों में एक बार चायपत्ती को लेकर चर्चा चली तो उन्होंने हमलोगों से पूछा कि आपलोग के यहां क्या रेट है इसकी. जीजू ने कहा कि लूज चायपत्ती की यहां क्वालिटी के अनुसार से अलग अलग रेट है. कोई 200 रूपए है तो कोई 260 रूपए भी. इतना सुनकर उन्होंने अपने वाइफ से कुछ कहा और उनकी वाइफ ने अपने बैग में से चायपत्ती से भरा एक प्लास्टिक बैग निकाला. इसे दिखाते हुए उन्होंने कहा कि अब इसे देखिये, हमारे यहां मात्र 80 से 90 रूपए किलो में आती है. वाकई थोड़ी सी पत्ती लेकर जब सूंघा तो महक बड़ी अच्छी लगी.
आनंद जी तो यहां तक कहने लगे कि इसमें से थोड़ी सी आप ले जाइए, घर में बना कर ट्राय करियेगा पर हमें यह मुनासिब नहीं लगा सो दीदी ने विनम्रता से उन्हें मना कर दिया. फिर उन्होंने भूटान के कई नोट हमें दिखलाये. कुछ नोट तो उन्होंने जबरदस्ती यादगार के रूप में हमें दे भी दिए. वैसे वहां के जो नोट होते हैं, उनकी वैल्यू अपने देश के रूपए से कम होती है. जैसे वहां का दस रूपए यहां आठ रूपए के बराबर होगा.
रात में हमलोगों ने साथ खाना खाया और सो गए. उन्हें ढाई बजे रात में आबू रोड उतरना था, इसलिए जीजू ने अपने मोबाइल में अलार्म लगा दिया. जब उनका स्टेशन आया तो वो भूटान घुमने आने का निमंत्रण और साथ में अपना व्हाट्स एप नंबर देकर विदा हुए. सुबह हमलोग भी साबरमती स्टेशन उतर गए. यहां के स्टेशन पर उतरते ही सबसे पहले गांधी जी की तस्वीरें दिखी. तब अचानक ख्याल आया कि अच्छा अब हमलोग गांधी जी की भूमि पर है. इसलिए सोचा पहले यहां कुछ फोटोग्राफी हो जाये फिर आगे का सोचेंगे.
अब हमलोग देश के सातवें सबसे बड़े महानगर अहमदाबाद में थे. जो गुजरात की आर्थिक राजधानी भी कहलाता है. साबरमती नदी के किनारे बसा यह शहर गुजरात की राजधानी गांधीनगर के नार्थ में 32 किलोमीटर की दुरी पर है.
कुछ दिन हमलोग यहां एक शादी समारोह अटेंड करने के लिए चाँदलोडिया में रुके थे. जून का पहला सप्ताह था और यहां भी गर्मी बहुत थी. पर राहत की बात यह थी कि अपने शहर की तरह यहाँ की बिजली बेवफा नहीं थी, दिन-रात हर वक़्त साथ रहती थी. यहां रहते हुए दो चीजें मुझे नई दिखीं. एक तो रात आठ बजे भी दिन जैसा उजालापन और दूसरी पानी की टंकी. जी, यहां कही भी पानी के लिए बोरिंग नजर नहीं आई. मुझे बताया गया कि इधर सब जगह सप्लाई का पानी ही आता है. और पानी जमा करने के लिए हर घर में अंडरग्राउंड टंकी बना है, जिसमें सप्लाई वाला पानी आकर गिरता है. लोग पीने के लिए उसी नल से पहले पानी भर लेते हैं और फिर वह नल से ही अंडरग्राउंड टंकी भी भर जाता है. उसी टंकी के अंदर एक मोटर लगा रहता है, जो बाद में अंदर जमे पानी को उपर छत पर लगे टंकी तक पहुंचा देता है.
यह चीज मुझे अच्छी लगी क्योंकि अपने यहां तो पानी जैसे अमूल्य संसाधन का दोहन करने के लिए लोग चापाकल से लेकर बोरिंग सब करवा लेते है ऊपर से सप्लाई वाला पानी जो समय-समय पर आकर घरों में व्यर्थ गिरता रहता है. वहां मैंने देखा कि पानी के इस्तेमाल में कितनी सावधानी बरती जाती थी.
अहमदाबाद में घुमने लायक बहुत जगह है पर समय के अभाव में हमलोग ज्यादा नहीं घूम पाए. पर हाँ यहां के महत्वपूर्ण और घुमने लायक जगहों को हमने नहीं छोड़ा. सुबह सुबह ही हमलोग टैक्सी से निकल गए गांधीनगर की ओर.
जाते समय रास्ते में मिला सबसे पहले निष्पक्षपाती त्रिमंदिर. तो यही उतर गए. यह विशाल मंदिर अहमदाबाद से करीब 18 किलोमीटर दूर, अहमदाबाद-महेसाणा हाईवे पर अडालज गांव के पास स्थित है.
इस मंदिर के पहले भाग में शिवलिंग, माता पार्वती, हनुमानजी, गणेश जी, नंदी आदि मूर्तियां स्थापित हैं. दुसरे यानि मंदिर के मध्य भाग में श्री सीमंधर स्वामी की करीब 13 फीट उंची और 18 टन भारी भव्य प्रतिमा खड़ी है. तीसरे मंदिर में श्री कृष्ण भगवान, तिरुपति बालाजी, श्री अंबा माता जी, की मूर्तियां हैं. इनके अलावे मंदिर में साई बाबा और भावी तीर्थंकर श्री पद्मनाभ प्रभु जी की मूर्ति की भी स्थापना की गयी है. श्री सीमंधर स्वामी भगवान की विशाल मूर्ति के अनुरूप उनका मुकुट भी वैसा ही बनाया गया है. मुकुट 65 किलोग्राम भारी है और इसपर सोने का गिलट किया गया है. यहां सभी भगवान के दर्शन करते करते उनके साथ फोटो क्लिक किया. इस बड़े मंदिर में घूमते हुए भोजनालय दिख गया, सुबह बिना नास्ता के घर से निकले थे तो खाना देखते ही भूख बढ़ गयी. इटली और सांभर का नास्ता किया और बाहर निकल गए.
गेट के पास गार्ड ने कहा की यहां होने वाले थीम शो को देख लीजिये, दस मिनट का यह शो निशुल्क है और बच्चों को बहुत मजा आएगा. तो हम सभी चले गए अंदर. अरे वाह कितना मजेदार है, अंदर घुसते ही ख़ुशी चहक कर बोली. अलग अलग थीम से होते हुए हमलोग आगे जा रहे थे. कभी जंगल और फुफकारता हुआ सांप तो कभी बादल और बरसात सबसे होकर गुजर रहे थे. देखने में विल्कुल रियल वाली फीलिंग आ रही थी. टायर पर कूदते भांगते तो रस्सी के पूल पर झूलते अंत में पहुंचे उस जगह, जहां दस मिनट का एक विडियो दिखाया जाने वाला था. कुछ देर बाद विडियो शुरू हुआ. यह विडियो बच्चों से संबंधित था क्योंकि इसमें बच्चे ही एक्ट कर रहे थे. भाषा गुजराती थी इसलिए समझ में कुछ नहीं आया लेकिन फिर भी मजा बहुत आया. अब हमलोग मंदिर से बाहर निकल गए.
अब हमारी गाड़ी अक्षरधाम मंदिर की ओर जा रही थी. गुजरात के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाने वाला यह मंदिर स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा बनवाया गया है. जो अहमदाबाद स्टेशन से 28 किलोमीटर दूर गांधीनगर के सेक्टर 20 में स्थित है. जब वहां पहुंचा तो देखा काफी भीड़ थी. मंदिर के अंदर कैमरा-मोबाइल से लेकर हैंड बैग कुछ भी ले जाने की मनाही थी. लाकर रूम में अपने इन सामानों को रखने के लिए लोगों की लाइन लगी थी. हमलोग भी अपने मोबाइल और कैमरे को जमा कर अंदर जाने वाले कतार में खड़े हो गए.
गहन परीक्षण के बाद एक एक कर सभी को अंदर जाने दिया जा रहा था. पर मैं थोडा उदास था. अरे मेरा साथी कैमरा जो बाहर ही रह गया. जब वह साथ रहता है तो कही घुमने में देखने में ज्यादा मजा आता था. उसके लेंस से ही तो मैं हर जगहों की खूबसूरती निहारा करता हूं, अब उसके बिना सुना सुना सा लग रहा था. खैर, भगवान के दर्शन करना था तो हमलोग दाखिल हुए मंदिर के अंदर. उफ़ क्या मंदिर है यार.. दिखने में कितना बड़ा और विशाल. 32 मीटर ऊंचा, 73 मीटर लंबा और 39 मीटर चौड़े इस मंदिर की खासियत यह है कि यह 6000 टन गुलाबी बलुआ पत्थर से बना है. और तो और इस मंदिर के निर्माण में कही भी स्टील या सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है. भगवान स्वामीनारायण को समर्पित यह मंदिर तीन मंजिला है. हरी मंडपम या मुख्य तल, विभूति मंडपम या उपरी तल, प्रसादी मंडपम या भूमि तल. अक्षर धाम मंदिर का पहला तल जो हरी मंडपम कहलाता है, यहीं इस सम्प्रदाय के संस्थापक भगवान स्वामीनारायण की सोने की मूर्ति विराजमान है.
दोनों ओर भगवान के अनुयायी स्वामी गुनाटीनंद और स्वामी गोपालनंद की भी मूर्ति है. पुरे मंदिर में बेजोड़ नक्काशी की गयी है. वही यहां लगे बगीचे और पानी के फव्वारे भी देखने में बेहद आकर्षक लगते हैं. यहां शाम 7 बजे लाइट और साउंड शो भी होता है. मंदिर घुमने के बाद हमलोग इसके प्रदर्शनी कक्ष में गए. यहां भी टिकट के लिए खूब भीड़ थी. फुल टिकट जहां 50 था वहीँ बच्चे के लिए 30 रूपए का रेट था. टिकट लेने के बाद एक्सिबिशन हाल के अंदर जाने के लिए फिर एक लम्बी लाइन का हिस्सा बने. यहां कुल पांच प्रदर्शनी हाल है, जिसमे भगवान नीलकंठ (स्वामी नारायण) के जीवनी को विभिन्न तरीके जैसे पार्श्व ध्वनि, कठपुतली नाटक, चलचित्र आदि के द्वारा दर्शाया गया है. जो देखने और सुनने में काफी मनमोहक एवं आश्चर्य चकित कर देता है. प्रदर्शनी हाल से बाहर निकलने पर कैंटीन से होकर बाहर जाने का रास्ता है. ताकि दो-ढाई घंटे के प्रोग्राम के बाद फ्रेश होने के लिए चाय-नास्ते के साथ कई तरह के व्यंजनों का लुत्फ़ उठा सके. हमलोगों ने यहां गुजराती थाली, पंजाबी थाली और मसाला डोसा खाया तो बच्चों ने पिज़्ज़ा कॉम्बो का जम कर मजा लिया. साथ में कोल्डड्रिंक और आइसक्रीम ने खाने का मजा दुगुना कर दिया. जब मंदिर के बाहर निकले तो फिर से एक लाइन अपने सामान को वापस लेने के लिए. अंदर तो फोटो नहीं ले पाया इसलिए बाहर से कुछ शॉट क्लिक किया ताकि बाद में फोटो देख कर याद कर सकूं की अक्षरधाम घूमा था कभी. वैसे यहां से चलते चलते यह भी बता दूं कि यह मंदिर सोमवार को बंद रहती है और बाकी दिन सुबह 9:15 से लेकर शाम 5:15 तक खुली रहती है.
अक्षरधाम मंदिर घूमने के बाद अब बारी थी अडालज कुआं की. यह एक संरक्षित स्मारक घोषित है. जो गुजरात के गांधीनगर जिला के दक्षिण-पच्छिम में स्थित एक छोटे से गांव अडालज में है. इस गांव का मुख्य आकर्षण यहां का एक सीढ़ीनुमा कुआं है जिसे अदालाज वव के नाम से जाना जाता है.
सन 1499 में वाघेला के राजा वीर सिंह की पत्नी रानी रूदा बाई ने इसका निर्माण कराया था. इसकी खासियत यह है कि यह पूरी की पूरी पांच मंजिला इमारत जमीन से नीचे है. और इसके नीचे एक कुआं बनाया गया है. इसके दीवारों पर बेहद ही खुबसूरत कलाकारी की गयी है. जगह जगह परकोटे और खिड़की बने हुए है. जहां लोग अपनी तस्वीरें ले रहे थे. यह कुआं (Adalaj Stepwell Vav) अहमदाबाद से 19 किलोमीटर और गांधीनगर से 5 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. यहां नीचे कुआं की ओर जाने पर काफी ख़राब महक रहा था शायद कुआं का पानी गंदा हो. इसलिए हमलोग तुरंत ऊपर की ओर चले गए. हां ऊपर अच्छा लगा, खूब फोटोग्राफी हुई.
इसके बगल में ही एक पार्क भी बना है. कुछ देर हमलोगों ने वहां भी एक पेड़ के नीचे छाया में बिताया. अब आखिर में एक और जगह जाना था इसलिए हमलोग कुछ देर आराम कर के वापस अपनी गाड़ी के पास आ गए.
अब हम अपने अहमदाबाद टूर के आखिरी सफ़र पर थे और गाड़ी सड़क पर तेजी से धूल उड़ाती जा रही थी. हमें वैष्णों देवी पहुंचना था. अरे वो वाला नहीं, ये तो वैष्णों देवी मंदिर जैसा बना एक छोटा मंदिर था जो गांधीनगर में है. यहां भी कई मोड़ दार गुफा ऐसा बनाया गया है, जहां से गुजरते वक़्त लगता है कि बिलकुल असली वैष्णों देवी मंदिर जा रहे हैं. यहाँ माता के दर्शन कर अब हमारी अहमदाबाद की यात्रा पूरी हुई और इसके साथ पूरा हुआ हमारी गुजरात यात्रा का दूसरा पड़ाव.